Book Title: Dvantrinshikadwayi Kirtikala
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Bhailal Ambalal Shah

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Page 50
________________ कीर्तिकलाख्यो हिन्दीमाषानुवादः १४७ - . हे जिनेन्द्र ! बौद्ध लोग प्रतिपादन करते हैं कि-बाह्य पदार्थ नहीं है। यदि बाह्य पदार्थों का स्वीकार किया जाय, तो जड़ होनेके कारण उनका प्रतिभास ही नहीं होगा। इसलिये घट आदि आकार से प्रतिभासमान सब पदार्थ ज्ञान ही हैं । परन्तु यदि ज्ञानाद्वैत माना जाय, तथा ज्ञान को क्षणिक माना जाय तो कार्यकारण भाव की व्यवस्था नहीं रहेगी। क्यों कि - (एक काल में उत्पन्न होने वाले पदार्थों में कार्यकारणभाव नहीं माना जा सकता । पूर्व काल में रहने बाला कारण कहा जाता है, तथा उत्तर काल में होने बाला कार्य कहा जाता हैं।) पूर्वीपरकाल में उत्पन्न होने बाले पदार्थों में भी क्षणिक ज्ञानाद्वैत मानने से कार्यकारणभाव नहीं हो सकता, क्यों कि-कारण क्षणिक होने के कारण पूर्वकाल में ही नष्ट होगया, तो उत्तर काल में कार्य कहाँ होगा ?, कारण ही नहीं है। तथा ज्ञानाद्वैत मानने से पदार्थ का ज्ञान कैसे होगा ?, क्यों कि पदार्थ ही नहीं हैं। एसी स्थिति में ज्ञान में ज्ञान ही भासित होगा, पदार्थ नहीं। इसलिये बौद्धों का क्षणिकज्ञानवाद इन्द्रजालके जैसा निःसार है। ॥ १६ ॥ हेजिनेन्द्र ! आप के गुणो में दोष का आरोप करने बाले गौद्धों का शून्यवाद विलक्षण है !। (युक्तिरहित होने के कारण उपहासास्पद है। ) क्यों कि जैसे परवादी प्रमाण के बिना अपने पक्ष को सिद्ध नहीं कर सकते, वैसे शून्यवादी भी प्रमाण के बिना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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