Book Title: Dvantrinshikadwayi Kirtikala
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Bhailal Ambalal Shah

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Page 57
________________ १५४. अन्ययोगव्यवच्छेववात्रिंशिकारुतिः एकान्त असत् मानने से घटरूप में भी असत् होजायगा । इसलिये घटादि पदार्थ को द्रव्यकी अपेक्षा से नित्य, पर्याय की अपेक्षा से अनित्य, स्वद्रव्य आदिकी अपेक्षा से सत् , परद्रव्य आदिकी अपेक्षा से असत् , इस प्रकार परस्पर सापेक्ष सत्त्व असत्त्व आदि अनन्तधर्मात्मक मानने से ही घट की सत्ता सिद्ध होती है, अन्यों नहीं ।) ॥२२॥ ___(घट द्रव्य सत् है, घट उत्पन्न हुआ, घट नष्ट होगया, इस प्रकार एक एक धर्म का उल्लेख करके पदार्थ का प्रतिपादन होता है, अनेकधर्मों का उल्लेख करके नहीं । इसलिये वस्तु अनन्तधर्मात्मक नहीं है, यह कथन असंगत है । क्यों कि-) विवक्षावश संग्रहनय का आश्रयण कर द्रव्य तथा पर्याय में अभेद पक्ष में पदार्थ का पर्यायरहितरूप में (सामान्यरूप में) कथन होता है। जैसे पिण्ड, कपाल, घट इन प्रत्येक अवस्था में यह मिट्टी है' इस प्रकार कहा जाता है। तथा पर्याय (व्यावहार )नय की अपेक्षासे पर्यायों के भिन्न होने के कारण घट, कपाल, पिण्ड, इस प्रकार पृथक् पृथक् प्रतिपादन किया जाता है । इस प्रकार का प्रतिपादन विकलादेश (काल आदि से पदार्थ को भिन्न मानने के) पक्ष में होता है। तथा सकलादेश (काल आदि से अभेद का आरोप करने के) पक्ष में सप्तभङ्गात्मकवाक्य से अनन्तधर्मात्मक पदार्थ का प्रतिपादन होता है। इस प्रकार आदेशभेद से पदार्थ के प्रति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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