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कीर्तिकलाख्यो हिन्दीभाषानुवादः
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हे जिनेद्र ! दुष्ट तथा नष्टबुद्धिबाले परतीर्थिकों ने ऐन्द्रजालिक ( जादूगर) के जैसे इस संसार को, जहां तत्त्व अतत्त्व का कोई विवेक नहीं है, इसलिये जो अधःपतन का निमित्त होने के कारण भयङ्कर है-ऐसे अज्ञानरूपी अन्धकार में धकेल दिया है। (जैसे जादूगर माया का प्रयोग कर लोगों को जीवते हुए को मृत आदि रूप से कुछ का कुछ ही दिखाकर अत्यन्त अज्ञान अवस्था में रखता है । वैसे ही परतीर्थिक लोगों ने असत्तों का आश्रय लेकर सरलमति लोगोंको तत्त्व को अतत्त्व तथा अतत्त्व को तत्त्व बताकर अज्ञानके गढ़े में धकेल दिये हैं।) किन्तु इस प्रकार से लोगों को ऐहलौकिक तथा पारलौकिक अहित होता है, इसलिये यह अत्यन्त खेद का विषय है। हे पालनहार ! ऐसी स्थिति में इस जगत् का, निश्चितरूप से यथार्थवक्ता होने के कारण केवल आप ही उद्धार करने में समर्थ हैं। इसलिये निजहितेच्छु विवेकी लोग आपके विषय में ही सेवा की भावना रखते हैं । (विवेकी लोग रक्षक की ही सेवा करते है। अन्य की सेवा तो उलटे अनर्थकारक ही होगी। यथार्थवक्ता होने के कारण आप ही आप्त तथा सेवनीय हैं ) ॥ ३२ ॥
इति कलिकालसर्वज्ञश्रीहेमचन्द्राचार्यविरचिताऽन्ययोगव्यवच्छेदद्वत्रिंशिकास्तुतेःश्रीतपोगच्छाधिपतिशासनसम्राट्कदम्बगिरिप्रभृत्यनेकतीर्थोद्धारकबालब्रह्मचार्याचार्यवर्यश्रीमद्विजयनेमिसूरीश्वरपट्टालङ्कारसमयज्ञ -
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