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कीर्तिकलाख्यो हिन्दीमाषानुवादः
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उक्त कारण से बौद्ध लोगों को कथञ्चित् · भेदाभेद रूप आपका सिद्धान्त ही मानना पडेगा। जैसे बड़े जहाज के स्तम्भपर बैठा पक्षी, जहाज के बीच समुद्र में पहुंचने पर, उस स्तम्भ पर से उड़ता है, किन्तु तट तक नहीं पहुंच सकने के कारण लौटकर फिर उसी स्तम्भ पर जाकर बैठता है। उसप्रकार ही अन्यतीर्थिकों को भी आपके सिद्धान्त से दूर जाने पर भी पदार्थ की सिद्धि के लिये कोई दृढतर्क नहीं प्राप्त होता है, इसलिये उनको आपके सिद्धान्त को ही अन्ततः मान्यता देनी चाहिये । ( भेदाभेद पक्ष में वासना द्रव्यास्मक होनेके कारण नित्य हैं, क्षण पर्याय होनेके कारण अनित्य है । तथा द्रव्य की पर्याय के विना तथा पर्याय की द्रव्य के विना उपलब्धि न होने से दोनों में कथञ्चित् अभेद है । तथा द्रव्य और पर्याय रूप से कथञ्चित् भेद है। इस प्रकार पदार्थ को कथञ्चित्सामान्यविशेषनित्यानित्यभेदाभेद आदि अनेकधर्मात्मक माननेसे सर्वदोषों का समाधान हो जाता है ॥ १९ ॥ ..
हे जिनेन्द्र ! अनुमान के विना दूसरे के अभिप्राय से अनभिज्ञ ऐसे नास्तिकों को तो (आप के सिद्धान्त के विरुद्ध ) बोलने की भी योग्यता नहीं है । (नास्तिक लोग प्रत्यक्षमात्र को प्रमाण मानते हैं, अनुमान को नहीं । ऐसी स्थिति में वे दूसरों के अभिप्राय को जान नहीं सकते । क्यों कि अभिप्राय मनोवृत्ति है, तथा अरूपी है । इसलिये उसका प्रत्यक्ष हो नहीं सकता । तो
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