Book Title: Dvantrinshikadwayi Kirtikala
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Bhailal Ambalal Shah

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Page 37
________________ १३४ अन्ययोगम्यवच्छेदद्वात्रिंशिकास्तुतिः नहीं। क्यों कि आकाश आदि अखण्डपदार्थ हैं, इसलिये वहां कोई असाधारण सामान्य नहीं है, सामान्य अनेक व्यक्तियों में रहने बाला धर्म है । तथा एक घटको दूसरे घट से पृथक् रूप से जानने का साधन है-दोनों घटों के अवयवों का भिन्न होना । परमाणु निरवयव होते हैं । इसलिये उन द्रव्यों में एक विशेषनामका पदार्थ मानते हैं, जिसके बल से एक परमाणु का दूसरे परमाणु से आकाश आदि का काल आदि से भिन्न रूप में योगियों को ज्ञान होता है । इसलिये सामान्य और विशेष दोनों भिन्न पदार्थ हैं। उसका खण्डन करते हुये कहते हैं कि) कोईभी पदार्थ अपने से एकान्तभिन्न पदार्थ की अपेक्षा से जाने नहीं जाते। इसलिये जो वस्तुतः एक आश्रय होने के कारण कथञ्चित् अभिन्न हैं, उनको एकान्त भिन्न मानकर सामान्य और विशेष इन दोनों को पृथक् पदार्थ कहने बाले पदार्थ तत्त्व के जानने में अपटु हैं; इसलिये युक्तिविरुद्ध कहते है । (यदि सामान्य विशेष एकान्त भिन्न हों तो घट के देखनेपर, पहले घटत्व का ज्ञान होगा, पीछे यह घट है पट नहीं इस प्रकार का ज्ञान होगा। ऐसी स्थिति में क्रम से तथा विलम्ब से ही किसी भी वस्तु का ज्ञान हो सकता है। लेकिन यह कहीं भी किसी को अनुभूत नहीं है । तथा घट से एकान्त भिन्न घटत्व यदि उक्तज्ञान का कारण माना जाय तो पट को भी उक्तज्ञान का कारण क्यों न माना जाय ? । घटत्व तथा पट में घट से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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