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कीर्तिकलाख्यो हिन्दीभाषानुवादः
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भिन्नता तो समान ही है । इसलिये जिनागम के अनुसार घट को ही सामान्य तथा विशेष रूप मानना चाहिये । सामान्य और विशेष दोनों विरुद्ध धर्म एक घट में नहीं रह सकते, ऐसा कहना भी संगत नहीं । क्यों कि घट के देखने से सामान्य और विशेष दोनों की प्रतीति होती है, इसलिये दोनों में विरोध नहीं माना जासकता ।) ॥ ४ ॥
( सामान्य नित्य है, विशेष अनित्य है, इसलिये विरोध होने के कारण एक ही पदार्थ उभय स्वभाव का नहीं हो सकता-- ऐसा कहना असङ्गत है । क्यों कि) दीप से लेकर आकाश तक सब पदार्थ समान स्वभाव बाले हैं । दीप एकान्त अनित्य नहीं है, दीपके अणुओं के प्रकाशगुण का नाश होता है, तथा अन्धकाररूप गुण उत्पन्न होता है,किन्तु दीपके अणु नष्ट नहीं होते, इसलिये पर्याय की अपेक्षा से कोई भी पदार्थ अनित्य कहाजाता है, तथा द्रव्य की अपेक्षा से वही पदार्थ नित्य भी है। आकाश भी द्रव्य की अपेक्षा से ही नित्य है,
अवगाह रूप पर्याय तो उत्पन्न और नष्ट होते ही रहते हैं, इसलिये पर्याय की अपेक्षा से आकाश भी अनित्य है, इस प्रकार पदार्थमात्र नित्य और अनित्य होने के कारण सम स्वभाव हैं। (उत्पादव्ययध्रौव्य स्वभाव हैं ।) इसलिये पदार्थ स्याद्वाद के लक्षण से युक्त हैं। (स्यात्पद से युक्त होकर ही कोई भी पद किसी भी पदार्थ का प्रतिपादनकर सकता है । जैसे उपरोक्त युक्ति के अनुसार किसी भी
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