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अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिकास्तुतिः
ऽद्वैत आदि का समर्थन किया । बुद्धदेवने 'सब अनित्य है' ऐसा सामान्य रूपसे कहा। उनके शिष्यों ने क्षणिकत्ववाद सर्वशून्यत्ववाद आदि का समर्थन किया। इस प्रकार जहां गुरु शिष्य में ही मतभेद है, उसको प्रमाण कैसे माना जा सकता है ? ।) बड़े हर्ष की बात है कि, आप के शासन में इस प्रकार का गुरु के प्रति शिष्य का विद्रोह नहीं हुआ । (क्यों कि इस शासन में गुरु का कथन यथार्थ है, इसलिये शिष्य को विद्रोह करने का अवसर ही नहीं है ।) इसलिये आपके शासन के साम्राज्य का पराभव नहीं हो सकता। (जहां मतभेद है, वहीं पराजय का अवसर है। जहां मतैक्य है, वहां नहीं।) ॥१६॥
हे वीतराग ! परतीर्थिकों के कल्पित या स्वीकृत विलक्षण देवोंके विषय में - देहरहित = निर्गुणता-रूपहेतु से सर्वदामु क्तहोना, तथा शरीरी होने के कारण वेद आदिका उपदेश करना-ये परस्पर विरोधी (जो निर्गुण है वह शरीरी नहीं हो सकता, तथा जो अशरीरी है वह उपदेश नहीं दे सकता, जो शरीरी है वह मुक्त नहीं हो सकता, इस प्रकार एक व्यक्ति का शरीरी होना, तथा मुक्त होना और उपदेश देना परस्पर विरुद्ध है ।) ये दोनों बातें कैसे घटित हो सकती हैं ? । (विरुद्ध धर्म एकस्थान में नहीं रहते हैं, अन्यथा विरोध ही नहीं हो सकता । इसलिये उक्तप्रकार से विरुद्ध धर्मों से युक्त कोई देव कल्पित ही हो सकते हैं, वास्तविक नहीं।) ॥१७॥
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