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अर्हम्
॥ श्रीविजयनेमि-विज्ञान-कस्तूर-परिसद्गुरुभ्योनमः ॥
॥ अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिीशिकास्तुतिः ॥ ॥ कर्तिकलाख्यो हिन्दीभाषानुवादः ॥
कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य महाराज जिनेश्वर ही आप्त हैं, इस अभिप्राय से तीर्थकर महावीर भगवान की स्तुति का प्रारम्भ करते हैं
जो केवलज्ञान नाम के अनन्तज्ञान से युक्त, वीतराग, तथा जिनका स्याद्वाद नाम का सिद्धान्त तीनों काल में सत्य है, और जो देवों के भी पूजनीय हैं, ऐसे आप्तो में मुख्य और स्वयं सिद्धज्ञानबाले श्री वर्धमान जिन की स्तुति का मैं यत्न करता हूँ। (जो ज्ञानी हैं, वही निर्दोष भी हो सकते हैं, उनका ही सिद्धान्त तीनों काल में सत्य हो सकता हैं। किन्तु अल्पमति तथा रागद्वेष से युक्त व्यक्तियों का नहीं। इसलिये देव भी उनकी ही पूजा करते हैं।
और उनको ही आप्तो में मुख्य कहा जा सकता है। एवं स्वयंसिद्धज्ञान बाले ही उक्तगुणों से युक्त हो सकते हैं, शिक्षा से वैसा
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