Book Title: Dvantrinshikadwayi Kirtikala
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Bhailal Ambalal Shah

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Page 8
________________ पूना से कविरत्न समर्थ व्याख्यानकार पन्यास श्रीयशोभद्रविज. यजी महाराज के साथ विहार करते हुये आप दक्षिण में बेंगलोर नगर पधारे, तथा उसके उपनगर गान्धीनगर श्रीसंघ की चातुर्मासार्थ आग्रहपूर्ण विनती का स्वीकार कर पू. पं. श्री की आज्ञा से चातुमासार्थ गान्धीनगर पधारे, तथा इस चातुर्मास में ही आपने उक्त द्वात्रिंशिकाद्वयी की 'कीर्तिकला' नामक संस्कृत व्याख्या तथा हिन्दी भाषानुवाद की रचना की है। यहां यह उल्लेखनीय है कि अयोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका की संस्कृत व्याख्या कर पूज्य गणिवर श्री ने अपूर्व कार्य किया है, जिसके फलस्वरूप एक अनपेक्षित न्यूनता का परिहार हुआ है। यह अत्यन्त अभिनन्दनीय तथा हर्ष की बात है। इस मूल्यवान् पुस्तक के प्रकाशनार्थ कई पुण्यशालियों ने आर्थिक सहायता प्रदान कर मुझ को अत्यन्त उपकृत किये हैं। उन महानुभावों की शुभनामावली इस पुस्तक में अन्यत्र उल्लिखित है। इस अवसर पर मैं उन महानुभावों का सहर्ष आभार मानता हूँ । तथा प्रा. श्री हीरालाल रसिकदास कापडीयाजी ने विस्तृत तथा मननीय प्रस्तावना लिखकर इस पुस्तक के गौरव में जो अभिवृद्धि की है, तदर्थ मैं सहर्ष अपनी कृतज्ञता प्रकाशित करता हूँ। यहां पर विशेषरूप से यह सूचित करते हुए मुझे अत्यन्त हर्ष हो रहा है कि दानवीर भावनगर निवासी श्रेष्ठिवर्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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