Book Title: Dravyadrushti Prakash
Author(s): Vitrag Sat Sahitya Prasarak Trust
Publisher: Vitrag Sat Sahitya Trust Bhavnagar

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Page 6
________________ स्मरणांजलि धर्मस्नेही स्वजन ! ____ आपश्रीने तीनकालमे उत्कृष्ट और महान् धर्मकी भावनाको अपने जीवनमे सम्पूर्ण रूपसे पू. गुरुदेवश्रीकी महान् कृपासे एकाकार परिणमा दिया । आपके जीवनका यही अनहद् अदम्य धार्मिक उत्साह प्रतिक्षण स्मरणमें आता है । आपने यह उत्तम बोधि-बीज निज कारणपरमात्माके आश्रयसे स्पष्ट अनुभव किया और ऐसी मांगलिक भावना की कि यह बीज घट-वृक्षकी तरह अनेक स्थानोमे प्रसरे और अनेको जीव विशाल पैमाने पर इसका लाभ ले, तथा हम सभीके लिये आपकी वृत्ति हरचंद इस तरफ़ बलण कराती है कि अपनी दृष्टि मेरी ओरसे हटाकर निज-स्वयंके पूर्ण अभेद धामको ही लक्ष्य बनावे, वही श्रेष्ठ है । अतः धर्मकी प्रभावना बढ़े, यह भाव भी निस्सन्देह इसमें गर्भित है। हमारे लिये धार्मिक भावनारूपी बीज रोपनेका महान् श्रेय आपश्रीको ही है। हम लोगोके लिये आपश्रीने उत्कृष्ट धार्मिक-भावनाका यह सन्मार्ग प्रशस्त कर दिया है। इसी भावनाके योगसे हमे पूज्य गुरुदेवश्रीका सुयोग प्राप्त हो रहा है । अहो ! आपके हृदयमे तो बस हर घड़ी और हर पल सोनगढ़का व सत् महात्माका आशीर्वाद देता हुआ चित्र ही अंकित रहा करता था। इस सत् मार्गकी ओरका यह वलण समय समय पर आपकी भावनामे ओत-प्रोत रहता था। उत्तमोत्तम धर्मके संस्कार आपके पत्रद्वारा हर क्षण प्रेरणारूप हो रहे है। आपका यह महान् उपकार पूरे भरतक्षेत्रको उत्प्रेरित कर रहा है। ऐसे महान संस्कारोके प्रति आपका यह परम उपकार हम सब कभी नही भूलेगे-नही भूलेगे। आपश्रीके अनमोल हस्तलिखित पत्रे, विविध सुवाक्य तथा प्रश्नोत्तरकी इस पुस्तक द्वारा आपको यह स्मरणांजलि अर्पित करते हुये ऐसी सुखद भावना भाते है कि इसमें दर्शायी गई अपकी मोभेच्छुक भावना शीघ्र अति शीघ्र पूर्ण हो । आशालता कुसुमलता कुमुदलता अनूपकुवर TAनन्द्र-रमा नरेशचन्द्र अनिलकुमार

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