Book Title: Dighnikayo Part 4
Author(s): Vipassana Research Institute Igatpuri
Publisher: Vipassana Research Institute Igatpuri

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Page 227
________________ २०२ दीघनिकाये सीलक्खन्धवग्गट्ठकथा (३.२५८-२५८) तत्थ किञ्चापि येहि लक्खणेहि समन्नागतो राजा चक्कवत्ती होति, न तेहेव बुद्धो होति; जातिसामञतो पन तानियेव तानीति वुच्चन्ति । तेन वुत्तं - "येहि समन्नागतस्सा"ति । सचे अगारं अज्झावसतीति यदि अगारे वसति । राजा होति चक्कवत्तीति चतूहि अच्छरियधम्मेहि, सङ्गहवत्थूहि च लोकं रञ्जनतो राजा, चक्करतनं वत्तेति, चतूहि सम्पत्तिचक्केहि वत्तति, तेहि च परं वत्तेति, परहिताय च इरियापथचक्कानं वत्तो एतस्मिं अत्थीति चक्कवत्ती। एत्थ च राजाति सामधे । चक्कवत्तीति विसेसं । धम्मेन चरतीति धम्मिको। आयेन समेन वत्ततीति अत्थो । धम्मेन रज्जं लभित्वा राजा जातोति धम्मराजा। परहितधम्मकरणेन वा धम्मिको। अत्तहितधम्मकरणेन धम्मराजा। चतुरन्ताय इस्सरोति चातुरन्तो, चतुसमुद्दअन्ताय, चतुब्बिधदीपविभूसिताय पथविया इस्सरोति अत्थो । अज्झत्तं कोपादिपच्चत्थिके बहिद्धा च सब्बराजानो विजेतीति विजितावी। जनपदत्थावरियप्पत्तोति जनपदे धुवभावं थावरभावं पत्तो, न सक्का केनचि चालेतुं । जनपदो वा तम्हि थावरियप्पत्तो अनुयुत्तो सकम्मनिरतो अचलो असम्पवेधीतिजनपदत्थावरियप्पत्तो । सेय्यथिदन्ति निपातो, तस्स चेतानि कतमानीति अत्थो। चक्करतनन्तिआदीसु चक्कञ्च, तं रतिजननटेन रतनञ्चाति चक्करतनं । एस नयो सब्बत्थ | इमेसु पन रतनेसु अयं चक्कवत्तिराजा चक्करतनेन अजितं जिनाति, हथिअस्सरतनेहि विजिते यथासुखं अनुचरति, परिणायकरतनेन विजितमनुरक्खति, अवसेसेहि उपभोगसुखमनुभवति । पठमेन चस्स उस्साहसत्तियोगो, पच्छिमेन मन्तसत्तियोगो, हत्थिअस्सगहपतिरतनेहि पभुसत्तियोगो सुपरिपुण्णो होति, इत्थिमणिरतनेहि तिविधसत्तियोगफलं। सो इत्थिमणिरतनेहि भोगसुखमनुभवति, सेसेहि इस्सरियसुखं । विसेसतो चस्स पुरिमानि तीणि अदोसकुसलमूलजनितकम्मानुभावेन सम्पज्जन्ति, मज्झिमानि अलोभकुसलमूलजनितकम्मानुभावेन, पच्छिममेकं अमोहकुसलमूलजनितकम्मानुभावेनाति वेदितब् । अयमेत्थ सङ्ग्रेपो । वित्थारो पन बोज्झङ्गसंयुत्ते रतनसुत्तस्स उपदेसतो गहेतब्बो । परोसहस्सन्ति अतिरेकसहस्सं। सूराति अभीरुकजातिका। वीरङ्गरूपाति देवपुत्तसदिसकाया। एवं ताव एके वण्णयन्ति । अयं पनेत्थ सब्भावो । वीराति उत्तमसूरा वुच्चन्ति, वीरानं अङ्गं वीरङ्गं, वीरकारणं वीरियन्ति वुत्तं होति । वीरङ्गरूपं एतेसन्ति वीरङ्गरूपा, वीरियमयसरीरा वियाति वुत्तं होति । परसेनप्पमद्दनाति सचे पटिमुखं तिट्टेय्य परसेना तं परिमद्दितुं समत्थाति अधिप्पायो । धम्मेनाति “पाणो न हन्तब्बो''तिआदिना 202 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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