Book Title: Dighnikayo Part 4
Author(s): Vipassana Research Institute Igatpuri
Publisher: Vipassana Research Institute Igatpuri

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Page 394
________________ संदर्भ-सूची पालि टेक्स्ट सोसायटी (लंदन)- १९६८, भाग-१ पालि टेक्स्ट सोसायटी पृष्ठ संख्या पालि टेक्स्ट सोसायटी प्रथम वाक्यांश वि. वि. वि. वि. वि. वि. पृष्ठ संख्या पंक्ति संख्या * w to « < 20066M2006 - 6m S « an am करुणासीतलहदयं सच्चानि पच्चयाकारदेसना मञ्जमाना पक्खं विनयञ्च संगायाम ठपेत्वा आनन्दं पञ्चन्नं भिक्खुसतानं महापरिदवो अहोसि । खण्डफुल्लपटिसंखरणं आणाचक्कं, तुम्हाकं वीतिनामेत्वा रत्तिया हन्द दानिमस्साहं चीवरं कत्वा थेरे भिक्खू ठपेसुं । द्वेनवुति सिक्खापदानि सङ्घस्स पत्तकल्लं चतुतिंससुत्तन्तपटिमण्डितं अनुपादिसेसाय तिप्पभेदमेव होति सुट्ठ च ने तायति समोधानेत्वा तयो पि वीतिक्कमप्पहानं इति अयं गाथा पञआसम्पदं कस्मा पनेस ति वेदितब्ब or o w guvo a aa a aa a aa a aar me ~ 0 3 63 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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