Book Title: Dighnikayo Part 4
Author(s): Vipassana Research Institute Igatpuri
Publisher: Vipassana Research Institute Igatpuri

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Page 395
________________ [६४] दीघनिकाये सीलक्खन्धवग्गट्ठकथा धम्मविनयादिवसेन इमिस्सा पठममहासंगीतिया मुण्डकस्स समणकस्स यदिदं आनन्दो ति संखेपो | नानप्पकारेन वुच्चमानो पि एवं मे सुतन्ति खो सावत्थियं देसनापटिपत्तिसमयेसु च सब्बगुणविसिट्ठताय वोसानमापादी अद्धानमग्गं पटिपन्नो वत्वा तथा तथा सप्पराजवण्णं ति अत्थो । आचरियेन रतनावेळरतनदामरतनचुण्णविप्पक्किण्णं बुद्धलीळाय चन्दो विय छायूदकसम्पन्न सुत्तन्तपरियायेन तयो अन्तरायिक धम्मे वा चक्खुना विसुद्धेन चितो च विधावन्ति दक्खिणेन पस्सेन कताधिकारपुग्गलदस्सनत्थं गहेत्वा विहरन्तं इमं विप्पकता न राजकथादिका उत्तरं आसवानं धम्मनेत्तिं ठपेसि अभूतभावेन एव कस्मा पनेतं वुत्तं सन्दिट्ठिको भिक्खु सब्रह्मचारीनं उपरि गुणे उपनिधाय अनोमनदीतीरे चक्कवाळमहासमुद्दे तथलक्खणं आगतोति Mor:2042 vur v mm or240 »RMA-MAur 2 - M * 64 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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