Book Title: Dighnikayo Part 4
Author(s): Vipassana Research Institute Igatpuri
Publisher: Vipassana Research Institute Igatpuri

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Page 375
________________ [४४] रासिवड्डको राहु - ८४, २३० राहुल - १५६ - १४० रुक्खच्छायाय- १२६, १७० रुक्खमूलन्ति - १७० रुक्खमूलं - ४५, १६९, २१९ रूप्पनलक्खणं - ५९, ६० रुहति - ७२ रूपकायपरिनिब्बानं - ३४ रूपक्खन्धो - १०१,१५९ रूपज्झानलाभीयेव - १७८ रूपतण्हादिभेदाय - १०७ रूपभवं - २८३ रूपायतनं - ३८, ६२, १५९ रूपारूपधम्मा - १५७, १६४, १६५ रूपावचरादयोति - २५३ रूपी ब्रह्मलोको - १४३ रूपं अनत्ता - १०४ रेणुं - ४४ रेवतो - १५६ रोगपलिबोधो - ७ रोजो - २०८ रोसिकं - २९६ - ८२ लक्खणन्ति लक्खणपरियेसनत्थं - १९७,२२२ लज्जीति - ६६ लटुकिकाति - २०८ लद्धसद्धानं - २०० लद्धिं - १००, १३७, २६२, २७९, २८० लबुजं - १३३ लहट्टानं - २८, २०४ लाभन्तरायकरो - २९७ लामकभावं - २२४ Jain Education International दीघनिकाये सीलक्खन्धवग्गट्ठकथा लिङ्गविपरियायो - १२४ लिङ्गविपल्लासो - २६७ लिच्छविराजा - २५२ लुज्जनपलुज्जनट्ठेन - १७१ लूखाकारा - २८५ लूखाजीविन्ति - २५९ लेणत्थञ्च - २४४ लेणमण्डपकूटागारादीनि - १६७ लोकक्खायिकाति - ८१ लोकधातूति - १११ लोकनिरोधगामिनी - लोकनिरोधो - ६३ लोकवज्जा - ८८ लोकविदू - ३७ लोकसमञ्ञा - २८४ लोकसमुदयो - ६३ लोकानुकम्पकाय - १९६ लोकायतं - ८४, २०० लोकियोकुत्तरो - २० लोकियसरणगमनं - १८९ ६३ लोकिया- ८८ लोकुत्तरमग्गफलसम्पयुत्तं - २६७ लोकुत्तरमग्गो - २६३ लोकुत्तरा - १८, ८८ लोकोति - ९०, ९१, ९८, १३६, १४२, २८० लोभधम्मो - २९८ लोभनीयचीवरं - १६१ लोमहंसनसुत्ते - १४७ लोमहंसमत्तम्पि - २१४ लोमहंसोति - १२५ लोहकुम्भियं - १९२ लोहिच्चोति - २९६ लोहितहोमं - ८३ लोहिताभिजाति - १३४, १३५ 44 For Private & Personal Use Only [ल-ल] www.jainelibrary.org

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