Book Title: Dharm Jain Updesh Author(s): Dwarkaprasad Jain Publisher: Mahavir Digambar Jain Mandir Aligarh View full book textPage 7
________________ शुद्ध सूचना पत्र | ( पुस्तक पढ़ने पहले ठीक कर लेवें) शुद्ध पत्र नं० पंक्ति नं० : हिंदी ७ अशुद्ध फर्मावरदार वफादार Executive'. १३ . १५ -२५ ३९ ४०. રૂ ४९ 37 ५० 33 પૂર - १४. १७ ११ २७ .-२५ १७ ११. .२८ ११ .२४ -२६ ૨૭ १० .२३ -२४ ".. Fxecutive ठ - सः हवयह संख्यात Structure Enginere कंवलज्ञान भँदिर भोलो . चदनाओ स्पश अपन प्रकृत के स्वरू नए सक गुणानवाद' नर्मल श्रर दते काम 'संसारी ह उषक क़ नय दुखने लगा पर्य ललते सोम - त्रेशठि से ...मंदिर भीलों वेदनाओ वह यह संख्यात Structural Engineer केवलं ज्ञान ६ स्पर्श अपने + प्राकृत कि. 'स्वरूप' नपुंसक 'गुणानुवाद निर्मल श्रीर 'देते कामां संसारी उनके के नग्न देखने : लगाए पूर्ण लगते सीमPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 151