Book Title: Dhamvilas
Author(s): Dyantrai Kavi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay
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________________ ( 2 ) महिमा अनंत भगवंत प्रभु, जगत जीव असरन सरन / कर जोरि भविक बंदत चरन, तारि तारि तारन तरन // 1 // सहित अनंत चतुष्ट, नष्ट हुव चारि घाति जब / कहत वेद मुख चारि, चारि मुख लखत जगत सब // दहिय चौकरी चारि, चारि संज्ञा बल चुकी / चारि प्रान संजुगत, चारिगति गमन विमुक्कौ // चहुसंघसरन बंधन हरन, अजर अमर सिवपदकरन / कर जोरि भविक बंदत चरन, तारि तारि तारन तरन // 2 // ___ सवैया इकतीसा (मनहर)। धर्मको बखानत है कर्मनिको भानत है, "लोकालोक जानत है ज्ञानको प्रकासके। ममता तजै खिरी है वानी जो अनच्छरी है, सुधारूप है झरी है इच्छाविना जासकै // सिंघासन सोहत है सक्र मन मोहत है, तीनि छत्र चौंसठि चमर ढरै तासकैं।' आनंदको कारक है भव्यनको तारक है, ऐसौ अरहंत देव बंदौं मद नासके // 3 // रागभाव टायौ तातै परिगह गहै नाहि, दोषभाव जाखौ तात आयुध न पेखिये। 1 आहार, भय, मैथुन, परिग्रह / 2 काय, श्वासोच्छ्वास, भाषा, आयु / 3 नष्ट करता है / 4 शस्त्र हथियार / Scanned with CamScanner

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