Book Title: Devdravyadi Vyavastha Vichar
Author(s): Vichakshansuri
Publisher: Parshwanath Jain Shwetambar Mandir Trust

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Page 8
________________ अति उत्तम धर्म कार्य है। यह कार्य भी जिनाज्ञा के अनुसार ही होना चाहिये। जिनाज्ञा के अनुसार देव द्रव्यादि धर्म द्रव्य की व्यवस्था का कार्य करने से पुण्यानुबन्धी पुण्य का बन्ध होता है स्वर्गीय सम्पत्ति मिलती है। अल्प काल में मुक्ति हो जाती है और यावत् तीर्थंकर नाम कर्म का बन्ध भी होता है। यदि जिनाज्ञा के विरुद्ध यह धर्म कार्य किया जावे तो भयंकर पापों का बन्ध होता है। जिसके परिणाम में आज्ञा विरुद्ध धर्म द्रव्य की व्यवस्था करने वाले को नरक तिर्यंचादि की दुर्गति में जाना पड़ता है। संसार के अन्दर अनन्त काल तक चोरासी के चक्कर में बुरे हाल से घूमना पड़ता है। और असह्य दुःख. यातनायें भोगनी पड़ती है। - जितना ही धर्म द्रव्य की व्यवस्था का कार्य लाभदायी हैं उतना ही यदि जिनाज्ञा को छोड़कर अपने मनमाने ढंग से यह कार्य किया जावे तो आत्मा के लिए नुकसानकारी हो जाता है। इसलिए धर्म द्रव्य की व्यवस्था करनेवाले ट्रस्टी वर्ग को धर्म द्रव्य की व्यवस्था का (वहीवटी कार्य) भली भांति से करना है और वास्तव में लाभ उठाना है तो उनको धर्म द्रव्य की व्यवस्था के कार्य में कदम कदम पर जिनाज्ञा का विचार और पालन करना होगा। जिनाज्ञा को कुचल करके स्वच्छंद रीति से करना है तो बेहतर है. कि ट्रस्टी पद छोड़ देना। धर्म द्रव्य की व्यवस्था के कार्य में हाथ ही नही डालना। अन्यथा डूब जाओगे।

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