________________ 39 वाले कारीगर मजदुरादि को पगार ज्यादा दे देते है और चीज वस्तु खरीदने में ज्यादा भाव दे देते है इस तरह करना दुर्वहीवट है। दुर्वहीवट किस प्रकार से होता है इस बाबत में द्रव्य सप्तति ग्रन्थ की टीका में ‘पण्णाहीणो भवे जो' यह पद की व्याख्या करते कहा है कि - प्रज्ञाहीनत्वमंगोद्धारादिना देवद्रव्यादिदानं यद्वा मंदमतितया स्वल्पेन बहुना वा धनेन कार्यसिद्धयवेदकत्वात्. यथाकथंचित् द्रव्यव्ययकारित्वं कुटलेख्यकृतत्वं च। वहीवट करने में बुद्धिहीनता यह है जो अधिक किम्मति जेवर जमीन जागीर आदि लिए बीना केवळ अंग उधार रूप से देव द्रव्यादि का धन व्याजादि में देना अथवा थोड़े धन से कार्य सिद्ध होगी या बहुत धन से उसका विचार किये बिना ज्यु मरजी में आवे. त्युं देव द्रव्यादि का व्यय करना और झूठे लेख करना। .. मंदिरादि कार्यों मे जो कारीगर मजदुर वगेरे काम करने के लिए रखाना हो तो उनका पगार मजुरी वगेरे लोक अपनी बील्डींग वगेरे बानाने में जो देते है उस मुताबीक देने का नक्की करना चाहिए और मंदिरादि के लिए कोई भी चीज खरीदनी है. तो वह बाजार भाव से खरीदनी चाहिए। विशेष प्रकार से विशालता रख कर मंदिरादि की संस्था के द्रव्य का