Book Title: Devdravyadi Vyavastha Vichar
Author(s): Vichakshansuri
Publisher: Parshwanath Jain Shwetambar Mandir Trust

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Page 67
________________ के लिए कदम उठाते आगे बढ़ रहे है, उसी तरह इन मुनि के मन में विचारधारा भी दुर्ध्यान तरफ आगे बढ़ती जाती है। अन्त में तो निर्णय कर लिया कि यह खीर गुरू को बताई तो वे सब खा जायेंगे इसलिए गुरूजी को खीर बताये बिना उनको खबर न पडे इस तरह एकान्त में बैठ कर खा लेना। - उपाश्रय में जाकर गुरू को खबर न पड़े इस तरह छुप के से खीर अकेले ने खा ली। खाते खाते भी खीर के स्वाद की शुभंकर सेठ के भाग्य की खूब-खूब मनोमन प्रशंसा करने लगे अ हा हा क्या मधुर-स्वाद! देवों को भी ऐसी खीर खाने को मिलना मुश्किल है। मैंने फजूल तप करके देहदमन किया। मुनि खीर खा के शाम को सो गये। प्रतिक्रमण भी किया नहीं। गुरू ने प्रेरणा की फिर भी वह सोते ही रहा। सुबह भी प्रतिक्रमण नहीं किया गुरू महाराज ने विचार किया। ये क्या हुआ? यह मुनि तो महान आराधक है साधु-जीवन की समस्त क्रियाएं प्रतिदिन अंप्रमत्त भाव से करता था। मुझे लगता है कि इसने अवश्यमेव अशुद्ध आहार का भोजन किया है। ___ यह विचार गुरू महाराज कर रहे थे उस वक्त सुबह में शुभंकर सेठ गुरू भगवन्त को वन्दन करने आये। सेठ ने देखा मुनि महात्मा अभि तक सोये हुए हैं गुरू को इसका कारण पूछा। गुरू ने कहा यह मुनि गोचरी करके सोये सो

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