________________ 60 के रंगमंडप में देखी। ये चावल अलौकिक थे तथा सुगन्ध से तन मन को तरबतर कर दे वैसे थे। शुभंकर सेठ को ये चावल देखकर दाढ में पानी आगया और विचारा के यदि ये चावल का भोजन किया होवे तो उसका स्वाद कई दिनों तक याद रह जावे। मंदिर में जिनेश्वर देव की भक्ति में रखे चांवल तो ऐसे लिए नहीं जाते। क्या करना अब। अन्त में उसने रास्ता निकाला, अपने घर से चावल लेकर दिव्य चावल के प्रमाण में रखकर वे दिव्य चावल ले लिए। इस तरह मन्दिर के चावल का बदला किया। दिव्य चावल घर लेजाकर उसकी खीर बनाई। खीर की खूशबु चारों ओर फैल गई। उस समय में मासोपवासी तपस्वी मुनि महात्मा का उसके घर में पदार्पण हुआ। सेठ ने मुनि महात्मा को खीर बहेराई। मुनि महात्मा खीर वहेर कर उपाश्रय तरफ जा रहे थे। रास्ते में दिव्य खीर की खुशबू पातरे को अच्छी तरह से ढंकने पर भी मुनि महात्मा के नाक तक पहुँच गई। मुनि ने न करने जैसा विचार किया। सेठ मेरे से भी बहोत भाग्यवान है कि वे ऐसा स्वादिष्ट और सुगन्धित भोजन प्रतिदिन करते है। मैं तो साधु रहा, मुझे ऐसा भोजन कहां से मीले, लेकिन आज मेरे भाग्य के द्वार खुल गये हैं आज तो स्वादिष्ट और सुगन्धित खीर खाने को मिलेगी। ज्युं ज्यु उपाश्रय तरफ आने