________________ की। अपना पूर्वभव सुनकर ऊंटडी को जातिस्मरण ज्ञान हुआ। गत जन्म में किये देवद्रव्य भक्षण के पाप का भारी पश्चाताप हुआ अरे! इस पाप से उत्तम कोटि का मानव जन्म गँवा कर जानवर में जन्म लिया अब मेरा क्या होगा। मैं धर्म कैसे कर सकूँगी। धर्म पाई। गुरू के पास सचित्तादि के त्याग के नियम लिए। सुन्दर जीवन जीने लगी। अन्त में शुभ ध्यान में मरकर देवलोक में गई। . इसलिए अपने पूर्वाचार्य कहते हैं कि मन्दिर की कोई भी चीज या उपकरण का अपने स्वयं के काम में उपयोग नहीं करना-जाकि देवद्रव्य के भक्षण का पाप न लगे। जिस तरह मन्दिर की कोई भी चीज का अपने कार्य में उपयोग करना पाप है उसी तरह मन्दिर की कोई भी अच्छी चीज अदल बदल कर ले लेना यह भी भारी पाप बन्ध का कारण है और इस जन्म में भी दरिद्रतादि कई प्रकार से दुखदायी बनता है। इस बात को जानने लिए शुभंकर श्रेष्ठि की क्या उन्हीं शास्त्रों मे लिखी है। वह इस तरह है - कांचनपुर नगर में शुभंकर नाम के सेठ रहते थे। संस्कारी और सरल स्वभावी शुभंकर सेठ को प्रतिदिन जिनपूजा और गुरू वन्दन करने का नियम था। एक दिन सुबह में कोई जिनभक्त देव ने दिव्य चांवल से प्रभुभक्ति की। वह दिव्य चावल की तीन ढगलियां मन्दिर