Book Title: Devdravyadi Vyavastha Vichar
Author(s): Vichakshansuri
Publisher: Parshwanath Jain Shwetambar Mandir Trust

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Page 63
________________ 50 जीव उत्तरोत्तर विशेष विशेष पुण्यवान होते हैं विशेष विशेष पुण्यवानों की हिंसा करने में उत्तरोत्तर हिंसक के दिल में निर्दयता और क्रूरता अधिक अधिक आती है। उसी तरह कोई आदमी सामान्य किसी आदमी का धन खा जावे उसकी अपेक्षा जीवदयादि का द्रव्य खा जावे तो ज्यादा पाप का बन्ध करे उससे भी साधारण द्रव्य-श्रावदाकि का द्रव्य साधु आदि का द्रव्य-ज्ञान तथा देवद्रव्य का भक्षण करने वाले को उत्तरोत्तर अधिक अधिकतर और अधिकतम पाप का बन्ध होता है। सब-जीवों में तीर्थंकर सर्वश्रेष्ठ है उसी तरह सब द्रव्य में देवद्रव्य सर्वश्रेष्ठ कोटि का द्रव्य है तीर्थकर की हिंसा करने की प्रवृत्ति करने वाला जैसे घोर पपी है उसी तरह देवद्रव्य का भक्षणादि करने वाला भी घोर पापी है। देवद्रव्य के भक्षणादि का ऐसा घोर पाप है कि देवद्रव्यादि का भक्षणादि करने वाले को इस जन्म में भी दरिद्रतादि की भयंकर यातनाएं भोगनी पडती है और जन्मान्तर में दुर्गतियों के चक्कर में अनन्त अनन्त बार घूमना पडता है, और अनन्तानन्त असह्य दुःख भोगने पड़ते है। एक मन्दिर के दीपक से अपने घर काम करने वाली देवसेन श्रेष्ठि की माँ की क्या दशा हुई? उसकी जानकारी के लिए उपदेश प्रासाद श्राद्ध विधि आदि ग्रन्थों में एक दृष्टांत

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