________________ 51 कोई संघ में विखवाद अपने स्वार्थीय कारणों के वश होकर खड़ा करे तो उसको सप्रेम समझाने के लिए प्रयत्न करना चाहिये। मन्दिर के पूजारी आदि से तथा साफ-सफाई आदि के लिए रखे उपाश्रयादि के आदमी से अपना कोई भी कार्य नहीं करवाना चाहिये। अपना काम करवाना होवे तो उसको अपनी ओर से पैसे देकर ही करवाना उचित है अन्यथा देवद्रव्यादि के भक्षण का दोष लगेगा। और यह कार्य भी पूजारी आदि के द्वारा इस ढंग से तो नहीं ही करवाना चाहिये कि जिससे मन्दिर के कार्यों में; प्रभुभक्ति में व्याक्षेप पडे; व्याघात होवे। जिनमन्दिरादि के वहीवट करने वाले ट्रस्टीगण के दिमाग में यह बात निश्चित रूप से होनी चाहिए कि ट्रस्टी पद सत्ता भोगने का पद नहीं है लेकिन जिनमन्दिरादि संस्था के सेवक बनकर कार्य करने का पद है। आज कई जगह ट्रस्टी लोगों ने ट्रस्टी पद को मान-सन्मान सत्ता और प्रतिष्ठा का पद बना दिया है अत: ये लोग जिनमन्दिरादि की सार-संभाल तथा देवद्रव्यादि की व्यवस्था सही ढंग से नहीं करते। जब मान-सन्मानादि में बाधा खड़ी होने का प्रसंग उपस्थित होता है तब वे ट्रस्टी मंडल में पक्षापक्षी का वातावरण पैदा करके रगडे झगडे खडे कर देते हैं। अन्त में जाकर ये रगडे झगडे संघ के संप को तोड़ के रहते है। उसके कारण कई लोग धर्म विमुख बन