________________ जाते हैं। ऐसे ट्रस्टी वर्ग में अरिहन्तं परमात्मा तथा उनके शासन प्रति श्रद्धा की कमी है। श्रद्धा विहीन पैसेदार जब ट्रस्टी पद पर अरूढ होते तब उनका अभिमान आसमान तक पहुँच जाता है वे न तो जिनाज्ञा मुताबिक वहीवटी कार्य करते और न तो उसमें गीतार्थ गुरू भगवन्तों की राह लेते। ऐसे ट्रस्टी वर्ग देवद्रव्यादि धर्मद्रव्य का अयोग्य स्थानों मे लगाकर दुरूपयोग करके भयंकर पापों का बंध कर दुर्गति के अधिकारी बनते है अत: हरेक ट्रस्टी वर्ग महानुभावों को सूचन किया जाता है कि वे ट्रस्टी पद को मानसन्मानादि का पद न बनाकर सेवा का पद बनावे और श्री अरिहंत परमात्मा की आज्ञा को निगाह में रखकर समय समय पर आज्ञा का पालन करके जिनन्दिरादि धर्म स्थानों का तथा देवद्रव्यादि धर्मद्रव्य का वहीवटी कार्य करे, जा कि अपनी आत्मा संसार सागर में डूबे नहीं और दुरन्त दुखदायी दुर्गतियों के गहरे खड्डे में गिरे नहीं। जैन शासन में सारे वहीवटदार लोग सही तौर पर वहीवटी कार्य करके उत्तम कोटि का पुण्य लाभ उठावे इस हेतू हमारा यह पुस्तक प्रकाशन कार्य है और यह पुस्तक एक ध्यान से पुन: पुन: बाँचकर जिनाचा मुताबिक समस्य ट्रस्टी वर्ग वहीवटी कार्य सही ढंग से करे यही हमारी शुभ अभिलाषा