Book Title: Devdravyadi Vyavastha Vichar
Author(s): Vichakshansuri
Publisher: Parshwanath Jain Shwetambar Mandir Trust

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Page 46
________________ 40 दुर्व्यय करना वह स्व और पर (कारीगरादि) के लिए देव द्रव्यादि भक्षणादि के पाप बन्ध में कारण बनता है। अपने धन से मंदिरादि के कार्य करने में उदारता करो वह बात अलग है लेकिन धर्म संस्था के द्रव्य से कार्य करना है तो किफायत भाव से कार्य करके कर कसर करनी आवश्यक है। प्रत्येक श्रावक या ट्रस्टी वर्ग ने यह ध्यान रखना चाहिए कि अपने से थोड़ा सा भी देव द्रव्यादिका दुर्व्यय भक्षणादि करने द्वारा विनास न होवे। देव द्रव्य के विनाश का फल बहोत भयंकर बताया देवाइदव्वणासे, दंसणमोहं च बंधए मूढो। देवद्रव्यदिका विनाश करने वाला मूढ आत्मा मिथ्यात्व मोहनीय रुप दर्शन मोहनीय कर्म का बन्ध करता है और साथ में दुसरी भी भयंकर पाप प्रकृतिका बन्ध करता है। चेइअदव्वविणासे इसिधाए पवयणस्स उड्डाहे संजइचउत्थभंगे मूलग्गी बोहिलाभस्स।। __चैत्यद्रव्य-देव द्रव्यका विनाश करना मुनि की हत्या करनी जैन शासन की अवहेलना - निंदा करवाना साध्वी का चर्तुथ व्रत - ब्रह्मचर्य व्रत का भंग करना ये सब पाप बोधिलाभ के वृक्ष के मूल को जलाकर भस्मीभूत करने के लिए अग्नि

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