Book Title: Devdravyadi Vyavastha Vichar
Author(s): Vichakshansuri
Publisher: Parshwanath Jain Shwetambar Mandir Trust

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Page 47
________________ समान है। देवद्रव्य का भक्षणादि करने के पाप को साधु की हत्या साध्वी के साथ अनाचार करना प्रवचन - जैन शासन की अपभाजना करवाना ये पापों के बरोबरी का बताया है। जैसे ये पापकरने से आदमी अपने बोधी (धर्म) वृक्ष के मूल में आग लगाकर भस्मसात् करता है उसी तरह देव द्रव्य का विनाश करने वाला भी अपने धर्म वृक्ष के मूल में आग चापने का ही काम करता है। इसको जनम - जनम में धर्म की प्राप्ति नहीं होगी। देव द्रव्यादि धर्म का विनाश होता होवे तब सारे साधु और श्रावक संघ ने देव द्रव्यादि के विनाश को रोकने के लिए जोरदार प्रयत्न करने चाहिये। उपेक्षा करना अनंत भवभ्रमण का कारण है। देव द्रव्य का विनाश यह एक भयंकर आग है अनजान से भी आग को छु जाने से वह जलाए बिना नहीं रहती उसी तरह देव द्रव्यादि का भक्षण अनजान से भी हो जावे तो वह आत्मा के लिए नुकसान किये बिना नहीं रहता है। देव द्रव्य का भक्षण करने वाला इस जनम में दरिद्री दुःखी हो जाता है अन्त में मरते वक्त उसको इस महापाप से चित्त उपहत हो जाने से समाधि नहीं मिलती। मृत्यू के बाद वह नरक में जाता है और नरकादि दुर्गति की परंपरा

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