Book Title: Devdravyadi Vyavastha Vichar
Author(s): Vichakshansuri
Publisher: Parshwanath Jain Shwetambar Mandir Trust

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Page 51
________________ एक कोथली से व्यवस्था दोषित है। देव द्रव्यादि धर्म द्रव्य की व्यवस्था एक कोथली से करना दोषपात्र होने के वजह से अत्यन्त अनुचित है। गांव-गांव में यह एक कोथली की व्यवस्था है देव द्रव्य के रुपये आवे तो उसी कोथली में डाले, ज्ञान द्रव्य के रुपये आये तो उसी कोथली में तथा साधारणादि के रुपये आये तो भी उसी कोथली में डालते है जब मंदिरादि के कोई कार्य में खर्चने होते है तब उसी कोथली में से खर्च करते है लेकिन जब उस कोथली में केवल देव द्रव्य के ही रुपये पड़े है और चौपड़े में ज्ञान साधारण खाते का एस पैसा भी नहीं है उस वख्त आगम ग्रन्थ लिखवाने का या छपवाने का कार्य उपस्थित हुआ अथवा साधु साध्वीजी महाराज को पढ़ाने वाले पंडितजी को पगार चुकाने का प्रसंग उपस्थित हुआ तब जिस कोथली में केवल देव द्रव्य का ही धन है उसमें से रुपये लेकर खर्च करते है अथवा साधु आदि का वैयावच्चादि के प्रसंग में भी उसमें से ही खर्च करते है उससे जब तक कोथली में ज्ञान साधारण द्रव्य उधराणी में से न आवे वहा तक देव द्रव्य का भोग हुआ अत: एक कोथली पाप में पड़ने का उपाय है। वास्तव में देव द्रव्य को ज्ञान द्रव्य की तथा साधारण द्रव्य वगेरे सबकी कोथली अलग अलग रखनी देव द्रव्य आदि के उपभोग से बचने के लिये बहुत ही जरुरी है

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