Book Title: Devdravyadi Vyavastha Vichar
Author(s): Vichakshansuri
Publisher: Parshwanath Jain Shwetambar Mandir Trust

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Page 53
________________ 47 पूजारी वगेरे को देने की प्रवृत्ति चल रही है वह शास्त्र से पूरी खिलाफ है। ___ श्राद्ध विधि ग्रन्थ में आचार्य भगवन्त श्री रत्नशेखर सूरीश्वरजी फरमाते है कि : देवगृहागतं नैवेद्याक्षतादि स्ववस्तुवत् सम्यग् रक्षणीयं सम्यग् मूल्यादियुक्त्या च विक्रेयं // मंदिर में प्रभुभक्ति के लिए रखे गये नैवेद्य चांवल फलादि वस्तुका अपनी वस्तु की माफक सम्यग् रीत से रक्षण करना चाहिए और अच्छी तरह से उसको बेच देना चाहियें तथा बेचाने से आये पैसे प्रभु भक्ति निमित्त नैवेद्यादि रखा होने से देव द्रव्य में ही डाले जावे। गृहहट्टादि च देवज्ञानसत्कं भाटकेनापि श्राद्धन व्यापार्यः, नि:शकङ्कताद्यापत्तेः।। - इस श्राद्ध विधि ग्रन्थ में ग्रन्थकार यह कथन करते है कि देव द्रव्यादिका भक्षण करना बड़ा पाप है उसी देव द्रव्य के भक्षण प्रति सुग श्रावको की होती हैं ये सुग चली न जावे इत्यादि अनेक हेतु से देवं द्रव के या ज्ञान द्रव्य के मकान में भाडे से भी रहना श्रावक के लिए उचित नहीं है।

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