________________ 37 पजुसणादि पर्वो के प्रसंग में चढ़ावे में बोली रकम न देवे और देव द्रव्यादि कोई खा जाता होवे तो उसकी उपेक्षा करे तो वह श्रावक या वहीवटदार संसार में दीर्घकाल तक भटकनेवाला होता है। देव द्रव्यादि का दुसरों द्वारा भक्षणादि से होते विनाश की उपेक्षा करना वह दीर्घ संसार में भ्रमण का कारण है। कहा है कि - चेइयदव्वविणासे तद्दव्वविणासणे दुविहभेए / साहु उविक्खमाणो-अणंतसंसारिओ होई // . देव द्रव्य के हीरे माणेक सोना चांदी रुपैये वगेरे का भक्षणादि करने से विनाश करें तथा देव द्रव्य के धन से खरीदे नये तथा मंदिर के पुराने लकड़े पत्थर ईंट वगेरे का कोई विनाश करें उसमें उपेक्षा करने वाले श्रावक की क्या बात करना लेकिन सर्व सावध पापों से विरत' साधु भी उदासीन बन उपदेशादि देकर उस विनाश का निवारण न करे तो वह साधु भी अनंत संसारी होता है। देव द्रव्यादि का विनाश को देखकर साधु ने जरा भी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। ___रिस्तेदार या मित्रादि का कोई भी सम्बन्ध के टूटने की परवा किए बिना जो कोई भी देव द्रव्यादि का भक्षणादि करनेद्वारा विनाश करता हो तो उसकी उपेक्षा किसी भी श्रावक