________________ कीतनेक इने गीने साधु लुंछणा करने की प्रेरणा (गुरू महाराज के सामने रुपैयादि तीन बार हाथ से गोल धूमा के रखो) करके गुरू पूजा करवाते हैं और वह द्रव्य को साधारण में डलवाते हैं और गुरू वैयावच्च में उपयोग करवाते हैं। यह प्रवृत्ति किसी भी रीत से उचित नहीं है प्रेरणा कीये बीना स्वाभाविक रीत .से लुंछणा करके पूजा करे, वह बात अलग है और प्रेरणा करके करावे यह बात अलग है। स्वाभाविक रीत से बीना लुंछणे से गुरू पूजा श्रावकादि करते थे और वह द्रव्य देव द्रव्य में जाता था किन्तु उसको लुछणा करने की प्रेरणा करके गुरू पूजा करवाके साधारण में लेने से देव द्रव्य में घाटा पाड़ने का बड़ा भारी दोष लगता है। वर्तमान काल में बहुततया संघ में लुंछणा करके गुरू पूजा करने की प्रणालीका नहीं हैं। अत: गुरू पूजा निमित जो द्रव्य आवे उसको देव द्रव्य में लेना उचित है। परन्तु गुरुवैयावच्च में उपयोग करना उचित नही। श्रावको ने स्वद्रव्य से प्रभु पूजा वगेरे का लाभ लेना चाहिए। परन्तु कीसी स्थल में अन्य सामग्री के अभाव में प्रभु पूजा आदि का बाध आता दीखाइ दे और श्रावक संघ प्रभु पूजादि करने में स्वयं असमर्थ होवे तो देव द्रव्य में से पूजादि का प्रबन्ध कर ले। लेकिन प्रभू पूजादि जरुर होनी चाहिए। / प्रभु प्रतिमा के लीए-पूजा के द्रव्य, लेप आंगी आभूषण