Book Title: Devdravyadi Vyavastha Vichar
Author(s): Vichakshansuri
Publisher: Parshwanath Jain Shwetambar Mandir Trust

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Page 26
________________ .. 20 हजार के द्रव्य से थिराप्रद में जिनमंदिर देवकुलिका वगेरे करवाई। श्री सुमति साधु सूरी के वखत में मंडपाचलदुर्ग में रहा हुआ श्रीमाफर नाम के मलिक ने जैन श्रावकों के परिचय को पाकर जैन धर्म के सन्मुख बनके सुवर्ण द्रव्य से गीतार्थ गुरू भगवन्तों की पूजा की थी ऐसा वृद्धवाद है। गुरुपुजासत्कं सुवर्णादिद्रव्यं गुरुद्रव्यं गुरुमुच्चते। तथा स्वर्णादिकं. तु गुरुद्रव्यं जीर्णोद्धारे नव्यचैत्यकरणादौ च व्यापार्य। गुरुपूजा में आया हुआ सुवर्णादि द्रव्य को गुरुद्रव्य कहा जाता है और सुवर्णादि गुरुद्रव्य का उपयोग जीर्णोद्धार तथा नुतन जिनमंदिर के निर्माण में करना चाहिये। गुरू पूजा सत्कं सुवर्णादि रजौहरणाद्युपकरणवत् गुरू द्रव्यं न भवति। स्वनिश्रायामकृतत्वात्। गुरू की पूजा में आया हुआ सुवर्णादि द्रव्य रजोहरणादि उपकरण के जैसा गुरू द्रव्य नही है क्योंकि गुरू का वह द्रव्य निश्रित नही है। गुरू द्रव्य भी दो प्रकार का है निश्रित और अनिश्रित याने गुरू की मालिकी का और बीन मालीकी. का। रजोहरण मुहपत्ती पात्रादि वगेरे श्रावकादिने वहेराये हुए उपकरण साधु की मालीकी के होते है और गुरू की अंग

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