Book Title: Devdravyadi Vyavastha Vichar
Author(s): Vichakshansuri
Publisher: Parshwanath Jain Shwetambar Mandir Trust

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Page 38
________________ पास उधराणी न कर सके तो वह द्रव्य डुब भी जावे तथा वहीवट करने वाले ट्रस्टीओं ने भी अपने नाम से या अन्य के नाम से उधार लेकर अपने पास कमाणी करने के लिए नहीं रखने चाहिए। देव द्रव्यादि द्रव्य से व्यापारधन्धादि करके श्रावक अपने लिए कमाणी करे तो वह श्रावक दोष पात्र है इसलिए पुराणके. अन्दर भी कहा है कि - देवद्रव्येन या वृद्धि गुरुद्रव्येन यद्धनं तद्धनं कुलनाशाय मृतोऽपि नरकं व्रजेत। __ जिसको देव द्रव्य से जो समृद्धि मिले और गुरू द्रव्य से जो धनप्राप्त हो वह धन-समृद्धि उसके कुल का उच्छेद करने वाली बनती है और मरने के बाद वह आदमी नरक में जाता है तात्पर्य यह है कि देव द्रव्य की मुडी पर व्यापार करके जो आदमी समृद्ध बनता है और गुरू द्रव्य से व्यापार कर धन कमाता है उस आदमी को इस भव में इन पाप का उत्कृष्ट फल (कुल का उच्छेद रुपसे प्राप्त होना है और पारलोकिक उत्कृष्ट फल) नरक मिलती है, इसलिए किसी भी श्रावक ने व्यापार धन्धा करने के लिए देव द्रव्यादि उधार लेना वह पाप में पड़ने जैसा है। देव द्रव्यादि धर्म द्रव्य की वृद्धि करना है तो शास्त्रानुसार अधिक कीम्मती जेवर जागीर जमीनादि के उपर ब्याजादि से जैनेतर परधर्मी को उधार रूप से ब्याज में दे सकते हैं।

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