Book Title: Devdravyadi Vyavastha Vichar
Author(s): Vichakshansuri
Publisher: Parshwanath Jain Shwetambar Mandir Trust

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Page 37
________________ 31 जिस आचार्य भगवन्तादि की निश्रा में लाखों के चढ़ावे होते हैं उनमें से कीतनेक गौरव लेते हैं कि हमेरी निश्रा में बहुत बड़ी आवक हुई। गांव के लोग भी आनन्द विभोर बन जाते है। दूसरे गाँवों के लोग भी लाखों के चढ़ावे की विपुल प्रमाण में आमदानी को सुनकर खुब खुब अनुमोदना करते हैं। लेकिन लाखों के चढ़ावे बोलने वाले वह अपने चढ़ावे की रकम तुरन्त भरपाई नहीं करते। उस रकम पर संघ को थोड़ा ब्याज देकर स्वयं ज्यादा कमाते हैं और अपना व्यापार धन्दा पेढ़ी यों तक चलाते रहते हैं और अन्त में कभी ऐसा भी होता है कि मूल मूड़ी डुब जाती है। देव द्रव्यादि द्रव्य को अपने पास रखकर उसके उपर कमाणी करना श्रावक के लिए देव द्रव्यादि धर्म द्रव्य के भक्षण का दोष लगाने बराबर है। कितनेक जगह वहीतटदार ट्रस्टी लोक भी श्रीमंत श्रावकों के वहां देव द्रव्यादि धर्म द्रव्य ब्याज में रखते हैं और वे श्रीमंत श्रावक उसके उपर व्यापार करके कमाते हैं इससे ये भी देव द्रव्यादि धर्म द्रव्य के भक्षण के दोष के भागी बनते हैं इसलिए वहीवटदार टी वर्ग में किसी भी श्रावक को ब्याजादि में देव द्रव्यादि धर्म द्र मा राहिए। कितनेक ग्रन्थ में श्रावक को देव व्यादि कार की साफ मना की है हां कहीं होवे. ऐसा कोई नहीं आता। श्रावक को उधार देने में अनेक आप के यह भी एक आपत्ति है कि एक श्रावक लज र म स लेने वाले श्रावक के

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