Book Title: Devdravyadi Vyavastha Vichar
Author(s): Vichakshansuri
Publisher: Parshwanath Jain Shwetambar Mandir Trust

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Page 11
________________ पण्णाहीणो भवे जीवो लिप्पइ पावकम्मुणा।। देव द्रव्यादि द्रव्य का कोई भक्षण करे तथा दूसरे किसी को भक्षण करते देखने पर भी उसकी उपेक्षा करे तथा प्रज्ञाहीन जीव हो जावे याने वहीवट करने वाला विचार किये बिना मंदिरादि के कार्य में ज्यादा खर्च करे अथवा चोपड़े में खोटा नामा लिखे तथा झुठे लेख दस्तावेज वगेरे करे तो वह वहीवटदार गांढे पापों का बन्ध करता है। जिणवरआणारहियं वद्धारता वि जिणदव्वं। बुड्डन्ति भवसमुद्दे मूढा मोहेण अण्णाणा।। जिनेश्वर भगवन्त की आज्ञा का पालन किये बिना देवद्रव्यादि की वृद्धि जो वहीवटदार श्रावकं करता है वह मूढ है अज्ञान है और वह भगवान की आज्ञा का भंग करने से संसार सागर में डूबता है। . अतः देव द्रव्यादि धर्म द्रव्य का वहीवट करने वाले श्रावकों को वहीवट करने के सर्वोत्तम कार्य में जिनाज्ञा को नहीं भूलनी चाहिये। देवद्रव्यादि धर्म द्रव्य की व्यवस्था के अधिकारी कौन? धर्म द्रव्य की सम्पत्ति का संरक्षण संवर्धन और सद्व्यय

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