Book Title: Dashvaikalikam
Author(s): Kanchanvijay, Kshemankarsagar
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
सुमति- साधु श्रीदशवै० अ०९,
गुरुविनयो
पदेशः गा.४०९. ४१२
॥१६२॥
न भक्षयेत् , स्यादेवतानुग्रहादेन भिन्द्याद्वा शक्त्यग्रे प्रहारे दत्तेऽपि, एवमेतत्कदाचिद्भवति, न चापि मोक्षो गुरु- हीलनया-गुरोराशातनया भवतीति ॥ ४०७ ॥ एवं पावकाद्याशातना अल्पा गुर्वाशातना महतीत्यतिशयप्रदर्शनार्थमाह- आयरिअत्ति-आचार्यपादाः पुनरप्रसन्ना इत्यादि पूर्वाई पूर्ववत् । यस्मादेवं तस्मादनावाधसुखाभिकाङ्क्षीमोक्षसुखामिलाषी साधुर्गुरुप्रसादाभिमुखः-आचार्यादिप्रसादे उद्युक्तः सन् रमेत-वतेति ॥ ४०८ ॥
जहाऽऽहिअग्गी जलणं नमसे, नाणाहुईमंतपयाभिसित्तं । एवायरियं उवचिदइजा, अणंतनाणोवगओ वि संतो॥ ४०९ ॥ जस्संतिए धम्मपयाइं सिक्खे, तस्संतिए वेणइ पउछु । सकारए सिरसा पञ्जलीओ, कायग्गिरा भो मणसा अनिच्चं ॥ ४१० ॥ लज्जा दया संजम बंभचेरं, कल्लाणभागिस्स विसोहिठाणं । जे मे गुरू सययमणुसासयंति, तेऽहं गुरू सययं पूजयामि ॥ ४११ ॥ जहा निसंते तवणच्चिमाली, पभासई केवल भारहं तु । एवायरिओ सुयसीलबुद्धिए, विरायई सुरमज्ञ व इंदो ॥ ४१२ ॥
॥१२॥
For Private & Personal Use Only
T
Jain Education Intem
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276