Book Title: Dashvaikalikam
Author(s): Kanchanvijay, Kshemankarsagar
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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विनया
विनय
सुमति साधु श्रीदशक अ०९, उ०२
फलम् गा.४२६
४३१
तविनया उपस्थिताः प्राप्ता इति ॥ ४२मयोग-आज्ञाप्रदानलक्षणोऽस्यामाचक्षुषा दुःखमेध
तहेव सुविणीयप्पा, देवा जक्खा य गुज्झगा। दीसंति सुहमेहंता, इहिं पत्ता महायसा ॥४२६ ॥
एतदेव विनयाविनयफलं देवानधिकृत्याह-तहेवत्ति, तथैव यथा नरनार्यः अविनीतात्मानो भवान्तरेऽकृतविनया देवा-वैमानिका ज्योतिष्का यक्षाश्च-व्यन्तराश्च गुह्यका-भवनवासिनः, त एते दृश्यन्ते आगमभावचक्षुषा दुःखमेधमाना:-पराज्ञाकरणपरर्द्धिदर्शनादिना, आभियोग्यमुपस्थिता:-अभियोग-आज्ञाप्रदानलक्षणोऽस्यास्तीति अभियोगी तद्भाव आभियोग्यं, कर्मकरभावमित्यर्थः, उपस्थिताः-प्राप्ता इति ॥ ४२५ ॥ विनयफलमाह-तहेवत्ति, तथैवेति पूर्ववत् , सुविनीतात्मानो-जन्मान्तरकृतविनया निरतिचारधर्माराधका इत्यर्थः, देवा यक्षाश्च गुह्यका इति पूर्ववदेव, दृश्यन्ते सुखमेधमाना अर्हत्कल्याणकादिषु ऋद्धिं प्राप्ता इति देवाधिपादिप्राप्त यो महायशसो-विख्यातसद्गुणा इति ॥ ४२६ ॥ जे आयरियउवज्झायाणं, सुस्सूसावयणंकरा । तसिं सिक्खा पवईति, जलसित्ताइव पायवा ॥४२७॥
अप्पणट्ठा परट्टा वा, सिप्पा नेउणियाणि य । गिहिणो उवभोगट्ठा, इहलोगस्स कारणा ॥४२८॥ | जेण बन्धं वहं घोरं, परियावं च दारुणं । सिक्खमाणा नियच्छंति, जुत्ता ते ललिइंदिया ॥४२९॥ | तेवि तं गुरुं पूयंति, तस्स सिप्पस्स कारणा । सकारोंति नमसंति, तुट्ठा निदेसवत्तिणो ॥४३०॥ | किं पुणो जे सुयग्गाही, अणंतहियकामए। आयरिया जं वए भिक्खू, तम्हा तं नाइवत्तए ॥ ४३१ ॥
॥१६९॥
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