Book Title: Dashashrut Skandh Granth
Author(s): Kulchandrasuri, Abhaychandravijay
Publisher: Jain Shwetambar Murtipujak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ श्रीदशाश्रुतस्कंधे-प्रस्तावना अक्रियावादी एटले नास्तिकवादी, नास्तिक, प्ररुपक, नास्तिक द्रष्टि, न सम्यग्वादी न नीतिवादी एवी रीते आ लोक-परलोक माता-पिता-पुत्र-भाईबहेन विगेरे नथी मानतो तेमज अरिहंत, चक्रवर्ती, वासुदेव , बलदेव, नारकी , देवलोक, पुण्य-पाप- फल, सत्कर्म , दुष्कर्म तथा तेमनां फल कल्याण वगेरे नथी मानतो अने अत्यंत रागवालो पण होय छे तेथी महाइच्छावालो, महारंभी, महापरिग्रही, अधार्मिक, अधर्म अनुचर, अधर्म सेवी , अधर्मख्याती, अधर्मरागी, अधर्मदर्शी, अधर्मजीवी, अधर्मरंजक, अधर्मशील, अधर्मथी जीवनलीला चलावनारो, वली हाथमां लाकडी लईने छेदतो-भेदतो-कापतो, देखावमां प्रचंड-रौद्र-क्षुद्र-साहसिक, मायावडे ठगवामां होशियार, दुःशील, खराब परिचयवालो, दुर्गुणोनो नेता, दुःखीयाओने जोई आनंद पामनारो, शील-गुणमर्यादा रहित, पोषह-पच्चक्खाण विनानो, अढारे पापस्थानको सेवनारो, जावजीव सुधी आरंभ-परिग्रह हाथी घोडा-वाहन-व्यवसाय विगेरेमां मस्त अने तेथी तज्जनित पापनो भागी, एवी रीते अशुभ कर्मोने उत्पादन करी नरकादि गतिमां जईने कृष्णपाक्षिक जीवो छेदन-भेदन-ताडन-तर्जन विगेरे असह्य दुःखो सहन करे छे. आगामी भवमां दुर्लभबोधि थाय छे. आ प्रमाणे संक्षेपथी अक्रियावादीनुं वर्णन कर्यु. हवे क्रियावादीनुं वर्णन आस्तिकता करी सुशोभित जाणवू, परंतु महारंभादिके करीने मूर्छावालो होय अने कर्म संजोगे दुर्गतिमां जाय, पण शुक्लपाक्षिक तथा सुलभबोधि थाय. सक्रिया एटले जे जे वस्तुनो निषेध कर्यो छे तेने माननारो थाय. भवांतरे पण मार्गानुसारिपणुं पामीने सम्यक्त्व पामे. एवी रीते क्रियावादी मिथ्यात्वने छोडीने सम्यक्त्वी थईने दंसणपडिमाने धारण करे. ते दश प्रकारना श्रमण धर्मनी रुचिवालो होवा छतां पण श्रेणिक राजानी जेम देशविरति आदि गुणोने प्राप्त करी शके नहि. बीजी पडिमामां श्रमण धर्मनी रुचिवालो होवा छतां पण अणुव्रत, गुणव्रत तथा पौषधोपवास करे पण सामायिक, देशावगाशिक न करी शके. त्रीजी पडिमामां उपर कहेली विगत तथा सामायिक-देशावगाशिक करी शके पण आठम-चौदस-पूर्णिमादिनो पडिमा सहितनो पोषह न करी शके. ___ चोथी पडिमामां उपर कहेल बीना बधी ज करी शके पण एक रात्रिक उपासक पडिमाने धारण न करी शके. ఉతంతంతమయం XI | ఉతంతంతమంతయు

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 174