Book Title: Dashashrut Skandh Granth
Author(s): Kulchandrasuri, Abhaychandravijay
Publisher: Jain Shwetambar Murtipujak Sangh
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श्रीदशाश्रुतस्कंधे प्रस्तावना
दूतिपलास नामना चैत्यमां भगवान् समोसा. पर्षदा मली. प्रभुजीए उपदेश आप्यो. पछी साधु साध्वीओने बोलावीने आ प्रमाणे कहेवा लाग्या के निग्रंथ निर्ग्रथिणीओए पांच समितिओ समित, त्रण गुप्तिओए गुप्त, पांच इन्द्रियोए करीने गुप्त ब्रह्मचर्ये करीने गुप्त रहेवं . (अत्रे शंका थाय छे के पांच इन्द्रियोनी गुप्तिमां ब्रह्मचारीपणुं आवी जाय छे तो पछी जुदुं पद केम मूक्युं ?)
उत्तर- स्पर्शेन्द्रियना आठ विषयमां मैथुन सिवाय बीजी रीते आठ स्पर्शी मूल चारित्रना घातक न होवाथी ए पद जुहूं पाड्युं छे. बीजी रीते सेवाता आठ स्पर्शो देशचारित्रना घातक छे. त्यारे मैथुनमां सेवातो स्पर्श सर्वचारित्र घातक छे, माटे दश प्रायश्चित्तोमा मूल छेद प्रायश्चित्त मैथुन सेवनारने माटे छे. संबोधसित्तरीमां पण जणाव्युं छे के
"जे बंभचेरभट्ठा पाए पाडंति बंभचारिणं । ते हुति टुंटमुंडा, बोहिवि सुदुल्लहा तेसिं ।।''
जे ब्रह्मचर्यथी भ्रष्ट होय अने ब्रह्मचारीने पगे पाडे, वंदन करावे तो लुलो, लंगडो, अने दुर्लभबोधि थाय माटे आत्महितेच्छुओए भूलना भोग बन्या होय तो प्रायश्चित्त लई फरीथी भूल न थाय तेनी खास तकेदारी राखवी. जो ब्रह्मचर्य पालवानी शक्ति न होय तो ब्रह्मचारीओ पोताने वंदन न करे एवी रीते वर्तवू. आत्मा आस्तिक हशे तो उपरोक्त वात कबूल करशे. अने जो नास्तिक हशे तो वधारे कहेवापणं रहेतुं नथी, आत्मार्थी आत्महितेच्छु आत्मयोगी आत्मपराक्रमी पक्खी पोषहने विषे समाधिने पामेला धर्मध्यानना ध्याताओए पूर्व प्राप्त नहि करेला आ दश चित्तसमाधि स्थानकोने प्राप्त करवां. (१) धर्मचिंता (२) सर्व धर्मनुं ज्ञान मेलवीने स्वधर्मने नक्की करे ते संज्ञी ज्ञानी. (३) यथातथ्य स्वप्नदर्शी अथवा जातिस्मरणे करी स्व-परनो जाण बने (४) देवर्द्धिदर्शी (५) अवधिज्ञानी (६) अवधिदर्शनी (७) मनःपर्यवज्ञानी (८) केवलज्ञानी (९) केवलदर्शनी (१०) केवलमरणी. जेमां सर्व दुःखे करी रहित करी जन्ममरण नहि पामनार. श्लोकबद्ध गाथाओमां चित्तसमाधिनी व्याख्या करे छे. दुहा- शुद्ध चित्तने पामीने, रहे ध्यानमा लीन,
धर्मे स्थित शुभमना, मोक्ष लीए अदीन. १ वली ए चित्त पामीने, फरी न लोके जन्म, उत्तम स्थान जाणतो, संज्ञी ज्ञानथी मर्म. २
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