Book Title: Dashashrut Skandh Granth Author(s): Kulchandrasuri, Abhaychandravijay Publisher: Jain Shwetambar Murtipujak Sangh View full book textPage 9
________________ चतुर्थ पंचम दशा नी विगत संजलणता, भारपच्चोरुहणता. उपकरणउत्पादना चार प्रकारनी छे. (१) नहि प्राप्त करेला उपकरणोने मेलवे (२) जूना उपकरणोनुं संरक्षण करे तथा संगोपवे (३) अल्प उपधिवाला मुनिनो (स्वगणनो होय के परगणनो होय ) उपकरणवडे यथाविधि उद्धार करे (४) संविभाग करे. साहिल्या चतुर्विधा अणलोमवृत्तिका, प्रतिलोमकार्यकारिका, प्रतिरुपकार्यसंफर्शनक, सर्व अर्थने विषे अप्रतिलोभका, तेने ज सहायकारक गणाय छे. वर्णसंजलणता चार प्रकारे छे. (१) यथा तथा वर्णवादी (२) अवर्णवादत्यागी (३) वर्णवादप्रशंसक (४) आचार्य वृद्धोपसेवी. भारपच्चोरुहणता-योग्यने गच्छनो भार सोंपवो ते चार प्रकारे छे. नहि संग्रहेला परिजनोने संग्रहवावालो थाय. (२) शिष्यने आचारविचारनो ज्ञाता बनावे (३) साधर्मिक, ग्लान, तपस्वीनुं यथाशक्ति वैयावच्च करवामां उद्यमी बने (४) भला साधर्मिक केम ओछं कलह करनारा ओछा झगडा करनारा ओछा तुमंतुमा करनारा, बहुसंजमी- बहुसंवरी - अप्रमादी - बहुसमाधिवंत-संजम तपे करी आत्माने भावता केम विचरता नथी एवी चिंता राखनारा गच्छाधिपति गणाय. इति चतुर्थ अध्ययन गणिसंपदा. हवे पांचमा अध्ययनमां चित्तसमाधिनुं विवेचन करवामां आव्युं छे. जो उपयोगवालुं चित्त न होय तो बधी ज क्रियाकांडनुं फल पाणी वलोव्या जेवुं आवे, माटे चित्तसमाधिनी व्याख्या निर्युक्तिकारे अने चूर्णिकार महाराजे सरस रीते करी छे. अत्रे विस्तारना भयथी मूल उपरथी थोडुं लखवामां आवे छे. हे आर्य ! भगवान् श्री महावीर प्रभुए चित्तसमाधिना दश स्थानको जणाव्या छे तेथी स्थविर भगवंतो पण एम जणावे छे. शिष्य प्रश्न- केवा प्रकारना चित्तसमाधिना दश स्थानको छे ? उत्तर- स्थविर भगवंतो नीचे प्रमाणे दश चित्तसमाधिस्थानको जणावे छे, ते काले ते समये वाणिग्राम नामनुं नगर हतुं नगरनुं वर्णन बीजा ग्रंथोथी जाणी लेवुं. ते गामना ईशान खूणामां दूतिपलास नामनुं चैत्य हतुं . ते नगरनो स्वामी जितशत्रु नामे राजा हतो. तेने धारिणी नामनी राणी हती VIII .Page Navigation
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