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दर्शनसार ।
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अण्णाणादो मोक्खो णाणं णत्थीति मुत्तजीवाणं ॥ पुणरागमनं भमणं भवे भवे णत्थि जीवस्स ॥ २१ ॥
अज्ञानतो मोक्षो ज्ञानं नास्तीति मुक्तजीवानाम । पुनरागमनं भ्रमणं भवे भवे नास्ति जीवस्य ॥ २१॥ . अर्थ-अज्ञानसे मोक्ष होता है । मुक्त जीवोंको ज्ञान नहीं होता। 'जीवोंका पुनरागमन नहीं होता, अर्थात् वे मरकर फिर जन्म नहीं लेते
ओर उन्हें भवभवमें भ्रमण नहीं करना पड़ता । एक्को सुद्धो बुद्धो कत्ता सव्वस्स जीवलोयस्स । सुण्णज्झाणं वण्णावरणं परिसिक्खियं तेण ॥ २२ ।।
एकः शुद्धो बुद्धः कर्चा सर्वस्य जीवलोकस्य ।
शून्यध्यानं वर्णावरणं परिशिक्षितं तेन ॥ २२ ॥ अर्थ सारे जीवलोकका एक शुद्ध बुद्ध परमात्मा का है, शून्य या अमूर्तिक रूप ध्यान करना चाहिए, और वर्णभेद नहीं मानना चाहिए, इस प्रकारका उसने उपदेश दिया। जिणमग्गबाहिरं जं तच्चं संदरसिऊण पावमणो। णिञ्चणिगोयं पत्तो सत्तो मज्जेसु विविहेसु ॥ २३ ॥
जिनमार्गवाह्यं यत् तत्त्वं संदर्य पापमनाः । नित्यनिगोदं प्राप्तः सक्तो मद्येषु विविधेषु ॥ २३ ॥ अर्थ-और भी बहुतसा जैनधर्मसे बहिर्भूत उपदेश देकर और तरह तरहकी शराबॉमें आसक्त रहकर वह पापी नित्यनिगोद (१) को प्राप्त हुआ।