Book Title: Darshansara
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 56
________________ दर्शनसार हुई है और कहाँ तक प्रामाणिक है। अभी तक हमें इस विषयमें बहुत सन्देह है कि, द्राविट संघ सग्रन्य प्रतिमाओंका पूजक होगा। । उक्त छह दोहे भी मालूम नहीं किस ग्रन्थके है । वचनिकाकारने इन्हें कहींसे उठाकर रख दिया है, पर यह नहीं लिखा कि इनका रचयिता कौन है । अन्तके चार श्लोकोंमें द्राविड संघके यतियोंका वेश बतलाया है और उनके कई भेद किये है, परन्तु दोहोंकी रचना इतनी अस्पष्ट है, और प्रतिके लेखकने भी उन्हें कुछ ऐसा अस्पष्ट कर दिया है, कि उनका पूरा पूरा अभिप्राय समझमें नहीं आता। इतना मालूम होता है कि इस संघके यति वस्त्र पहनते थे, माला आदि धारण करते थे और तिलक भी लगाते थे। वचनिकाके कर्त्ताने लिखा है कि १ पंचोपाख्यान, २ सप्ताशीति, ओर ३ सिद्धान्तशिरोमणि ये तीन ग्रन्थ द्राविड संघके है । संभव हे कि इन ग्रन्थोंकी प्राप्ति जयपुरके किसी भण्डारसे हो जाय। यदि ये मिल जाय, तो इस संघके विषयमें हमारी जो गाढ़ अज्ञानता है, वह अनेक अंशोंमें विरल हो सकती है। ६ श्वेताम्बर सम्प्रदायकी उत्पत्तिका इतिहास देवसेनसरिकृत भावसंग्रहमें इस प्रकार दिया है. छत्तीसे परिस सए विक्कमरायस्समरणपत्तस्स । सोरहे उप्पण्णो सेवडसंघो हु वलहीए ॥५२॥ आसि उज्नेणिणयरे, आयरिओ भद्दबाहुणामेण । जाणिय सुणिमित्तधरो, भणिओ संघो णिओ तेण ॥ ५३॥ होहइ इह दुन्भिक्खं, बारह वरसाणि जाव पुण्णाणि । देसंतराय गच्छह, णियणियसंघेण संजुत्ता ॥ ५४॥ सोऊण इयं वयणं, णाणादेसेहिं गणहरा सब्बे । णियणियसंघपउत्ता, विहरीआ जच्छ सुभिक्खं ॥ ५५ ॥

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