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'भ्रम- संशोधन' |
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५० वीं गाथा के अर्थमै ( पृष्ठ २१ ) दर्शनसारके रचे जानेका समय वि० सं०.९०९ लिखा गया है। परन्तु वचनिकाकारने इसके स्थानम संवत् ९९० लिखा है। ' णत्रसए शवए' की छाया 'नवशते 'नवके' न करके 'नवशते नवतौ ' करनेसे यह अर्थ ठीक बैठ जाता । वास्तवम होना भी यहीं चाहिए । सवत् ९९० मान लेनेसें मान लेनेसें माथुरसंघकी उत्पत्ति आदिक सम्बन्धमें जो ( पृष्ठ ३९-४० में ) शंकायें की गई हैं, उनका भी समाधान हो जाता है । वचनिकामें लिखा है--'
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“या. ग्रन्थका कर्त्ता देवसेन नामा मनि ९५१ के साल भए है ।
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- तिनने यह ग्रन्थ ९९० के साल किया है । " मालूम नहीं, यह ९५१
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की साल देवसेनके जन्मकी है या मुनि होनेकी, और इसक
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आधार क्या है । 1 2 । ;
- सम्पादक ।
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