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८ दर्शनसार वचनिकाके कर्ता लिखते है - " या आचार्य के किये भावसंग्रह प्राकृत, तत्त्वसार प्राकृत, आराधनासार प्राकृत, नयचक्र संस्कृत, आलापपद्धति संस्कृत, धर्मसंग्रह संस्कृत - प्राकृत, इत्यादि केई ग्रन्थ है । देवसेन नामके कई आचार्य हो गये है । इसलिए इन सब ग्रन्थोंको अच्छी तरह देखे विना यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि ये सब ग्रन्थ दर्शनसारके कर्ताके ही हैं । ' नयचक्र ' नामके ग्रन्थ दो है, एक संस्कृत और दूसरा प्राकृत । प्राकृत नयचक्र माणिकचन्द ग्रन्थमालाके द्वारा शीघ्र ही प्रकाशित होनेवाला है । यह भी देवसेनकृत समझा जाता है । एक नयचक्रका उल्लेख विद्यानन्दस्वामी अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ श्लोकवार्तिकमें करते है:
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दर्शनसार ।
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संक्षेपेण नयास्तावद्याख्यातास्तत्र सूचिताः । तद्विशेषाः प्रपञ्चेन संचिन्त्या नय-चक्रतः ॥
अ० १, सूत्र ३३ |
परन्तु श्लोकवार्तिक वि० सं० ८०० के लगभग बना हुआ है, अतएव यह नयचक्र दर्शनसारके कर्त्ता देवसेनसे बहुत पहलेका है ।
९ पैंतीसवीं गाथाके ' इत्थीणं पुण दिक्खा' इस पदका अभिप्राय वचनिकाकारने यह लिखा है कि मूलसघमें स्त्रियोंको ' छेदोपस्थापना' नहीं कही है, पर काष्ठासंघके प्रवर्तकने उन्हें छेदोपस्थापनाकी या फिरसे दीक्षा देनेकी आज्ञा दी है । इसके लिए कुन्दकुन्द स्वामीके किसी पाहुड़की यह गाथा दी है:
इत्थीणं सुणपभवे ( 1 ) अज्जाए छेओपठवणं । दिक्खा पुण संगणं णत्थीति-निरूवियं मुणिहिं ॥
इसी काठसघके प्रकरण में देवेन्द्रसेन- नरेन्द्रसेनविरचित सिद्धान्तसार दीपकका उल्लेख किया है और लिखा है कि यह काष्ठासंघका ग्रन्थ है | आश्विन मुदी ५ स० १९७४ वि० ।