Book Title: Darshansara
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 55
________________ परिशिष्ट । लोगोंको भ्रष्ट किया । वचनिकाकारका क्यन है कि ये चागं राजा थे। ५ द्राविड संवरे विषयमें दर्शनसारकी बचनिशाके कत्ती एक जगह जिनसहिताका प्रमाण देते हुए कहते है कि 'सभूषणं सबवं स्यात बिम्ब द्राविडसंघजम्'-द्रविड़ संघकी प्रतिमाये वन और आभपणसहित होती है । लिखा है-"जो विम्ब गणा पहरचो होय तथा अर्थ पल्यकासन निर्यन्थ हो है सो द्राविड संघका है। " आगे किसी ग्रन्थसे नीचे लिखे दोहे उगृत किये है - तैल पान प्रामुक कहै, लवण खान है निन्छ । भातनको यह (१) धौतजल, सदा पान अनवद्य ॥१॥ सिंहासन छत्रत्रयी, आसन अर्थ यल्यक। पंचफणी प्रतिमा जहाँ, द्राविड संघ सबंक ॥२॥ उत्तरीय अरु अंशु अध, उज्ज्वल दोय पुनीत । कमलमाल पद्मासनी, द्राविडजती सुमीत ॥३॥ रुद्राक्षत्रककण्ठधर, मानस्तंभविशेप। दक्षिण द्राविड जानिये, धर्मचक्र भुजशेप ॥४॥ पंच द्राविड मान ये, तिलक मान (१) रुद्राक्ष । माल भस्म मालै जपै, त्रिकसूत्री कोपीन (2)॥५॥ उत्तर द्राविड जानिये, काल चतुर्थज भेक। पंचमके दो भेद जुत, कल्प अकल्प अनेक ॥६॥ दूसरे दोहेमें द्राविड संघकी प्रतिमाका स्वरूप यह बतलाया है कि, वह अर्धपल्यंकासन होती है, उसके मस्तक पर सर्पके पॉच फण होते है, वह सिहासन पर स्थित होती है और तीन छत्र उसके ऊपर रहते है । इसमें यह नहीं कहा है कि, वह वस्त्र और आभूषणोंसे युक्त होती है। पर जिनसंहिताका उक्त श्लोकार्थ द्राविड प्रतिमाको वस्त्राभूषणसहित वतलाता है। मालूम नही, यह जिनसहिता किसकी बनाई

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