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दर्शनसार।
लिए कुछ जमीन वगैरह दान की जानेका उल्लेख है। चेरा-दानपत्रोंमें भी इसी कृष्णवर्माका उल्लेख है और उसका समय वि० संवत् ५२३ के पहले है। अतएव ऐसी दशामें यापनीय संघकी उत्पत्तिका समय आठवीं नहीं किन्तु छट्टी शतब्दिके पहले समझना चाहिए, आश्चर्य नहीं जो ग प्रतिका २०५ संवत् ही ठीक हो । दर्शनसारकी अन्य दो चार प्रतियोंके पाठ देखनेसे इसका निश्चय हो जायगा।
काठासंघका समय विक्रम संवत् ७५३ वतलाया है, परन्तु यदि काष्ठासंघका स्थापक जिनसेनके सतीर्थ विनयसेनका शिष्य कुमारसेन ही है, जैसा कि ३०-३३ गाथाओंमें बतलाया है,तो अवश्य ही यह समय ठीक नहीं है । गुणमद्रस्वामीकी मृत्युके पश्चात् कुमारसेनने काष्ठासंघको स्थापित किया है और गुणभद्रस्वामीने महापुराण शक संवत् ८२० अर्थात् विक्रम संवत् ९५५ में समाप्त किया है । यदि इसी समय उनकी मृत्यु मान ली जाय, तो मी काष्ठासघकी उत्पत्ति विक्रम संवत् ९५५ के लगभग माननी चाहिए, पर दर्शनसारके कर्ता ७५३ बतलाते है । ऐसी दशामें या तो यह मानना चाहिए कि गुणभद्रस्वामीके समसामयिक कुमारसेनके सिवाय कोई दूसरे ही कुमारसेन रहे होंगे, जिनका समय ७५३ के लगभग होगा, और जिनके नामसाम्यक कारण विनयसेनके शिष्य कुमारसेनको दर्शनसारके कर्त्ताने काष्ठासंघका स्थापक समझ लिया होगा, और या काष्ठासंघकी उत्पत्तिका यह समय ही ठीक नहीं है ।
अब रहा माथुरसंघ, सो इसे काष्ठासंघसे २०० वर्ष पीछे अर्थात् विक्रम संवत् ९५३ में हुआ बतलाया है; परन्तु इसमें सबसे बड़ा सन्देह तो यह है कि जब दर्शनसार संवत् ९०९ में बना है,जैसा कि इसकी ५० वीं गाथासे मालूम होता है तब उसमें आगे ४४ वर्ष बाद होनेवाले संघका उल्लेख कैसे किया गया । यदि यह कहा जाय कि दर्श