Book Title: Darshansara
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 49
________________ दर्शनसार। ४७ त्योंही कल्कि उसको छीन लेगा। इससे वे तीन दिनका संन्यास धारण करके कार्तिककी अमावास्याके पहले प्रहरके प्रारंभमें मृत्युको प्राप्त होकर सौधर्म स्वर्गमें एक सागर आयुवाले देव होंगे। आर्यिका, श्राविका और श्रावक भी सौधर्म स्वर्गमें कुछ अधिक एक पल्यकी आयु पावेंगे। इसके बाद उसी दिनके आदिमें, मध्यमे और अन्तमें कमसे धर्मका, राजाका और अग्निका नाश हो जायगा और लोग नंगे तथा कच्ची मछली आदिके खानेवाले हो जायेंगे।" मालूम नहीं, इस भविष्यवाणीमें सत्यका अंश कितना है । आजकलकी श्रद्धाहीन बुद्धिमें ऐसी बातें नहीं आ सकतीं कि अग्नि जैसे पदार्थका भी संसारमेंसे या किसी क्षेत्रमेंसे अभाव हो सकता है। पर इन बातों पर विचार करनेका यह स्थल नहीं है। इस ग्रन्थके सम्पादनमें और विवेचन लिखने में शक्तिभर परिश्रम किया गया है, फिर भी साधनोंके अभावसे इसमें अनेक त्रुटियाँ रह गई हैं । प्रमादवश भी इसमें अनेक दोष रह गये होंगे । उन सबके लिए मैं पाठकोंसे क्षमा चाहता हुआ इस विवेचनाको समाप्त करता हूँ। यदि कोई सज्जन इसकी त्रुटियोंके सम्बन्धमें सूचनायें भेजेंगे, तो मैं उनका बहुत ही कृतज्ञ होऊँगा। चन्दावाडी, बम्बई. नाथूराम प्रेमी। श्रावण शुक ४ सं० १९७४ वि.

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