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दर्शनसार।
परस्पर और कोई भेद नहीं है।" इस उल्लेखसे यापनीय संघके विषयमें कई बातें मालूम हो जाती हैं और दूसरे संघोंमें भी जो भेद हैं उनका पता लग जाता है।
इस विषयमें हम इतना और कह देना चाहते है कि यापनीयको छोड़कर शेष तीन संघोंका मूल संघसे इतना पार्थक्य नहीं है कि वे जैनामास बतला दिये जाय, अथवा उनके प्रवर्तकोंको दुष्ट, महामोह, जैसे विशेषण दिये जायें । ग्रन्थकर्त्ताने इस विषयमें बहुत ही अनुदारता प्रकट की है।
१८ गाथा ४३ वीं से मालूम होता है कि कुंदकुंदस्वामीके विषयमें जो यह किवदन्ती प्रसिद्ध है कि वे विदेहक्षेत्रको गये थे और वहाँके वर्तमान तीर्थकर सीमंधर स्वामीके समवसरणमें जाकर उन्होंने अपनी शंकाओंका समाधान किया था सो विक्रमकी नौवीं दशवीं शताब्दिमें भी सत्य मानी जाती थी। अर्थात् यह किंवदन्ती बहुत पुरानी है। इसीकी देखादेखी लोगोंने पूज्यपादके विषयमें भी एक ऐसी ही कथा गढ़ ली है।
१९ गाथा ४५-४६ में ग्रन्थकर्ताने एक भविष्यवाणी की है। कहा है कि विक्रमके १८०० वर्ष बीतने पर अवणवेलगुलके पासके एक गॉवमें वीरचन्द्र नामका मुनि मिल्लक नामके संघको चलायगा। मालूम नहीं, इस भविष्यवाणीका आधार क्या है । कमसे भगवानकी कही हुई तो यह मालूम नहीं होती। क्योंकि इस घटनाके समयको बीते १७४ वर्ष बीत चुके, पर न तो कोई इस प्रकारका वीरचन्द नामका साधु हुआ और न उसने कोई संघ ही चलाया । ग्रंथकर्ताकी यह खुदकी ही 'ईजाद' मालूम होती है। हमारी समझमें इसमें कोई तथ्य नहीं है। इस प्रकारकी भविष्यवाणियों पर विश्वास करनेके