Book Title: Darshansara
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 48
________________ ४६ दर्शनसार। अव दिन नहीं रहे । अन्य किसी प्रामाणिक ग्रंथमें भी इस संबके होनेका उल्लेख नहीं पाया जाता। २० आगे ४८ वी गाथामें भी एक भविष्यवाणी कही है। पंचमकालके अंतमें वीरागज नामका एक मूलगुणोंका धारण करनेवाला मुनि होगा जो भगवान महावीरके समान लोगोंको उपदेश देगा । त्रैलोक्यसारमें भी इस बातका उल्लेख किया है । यथाःइदि पडिसहस्सवस्सं वीसे कक्कीण दिक्कमे चरिमो। जलमंथणो भविस्सदि कक्की सम्मगमंथणओ ॥ ८४७ ॥ इह इंदरायसिस्सो वीरंगदसाहु चरिम सबसिरी। अज्जा अग्गिल सावय वर साविय पंगुसेणावि ॥ ८४८॥ पंचमचरिमे पक्खउ मास तिवासावसेसए तेण।। मुणि पढमपिंडगहणे संणसणं करिय दिवस तियं ॥८४९॥ सोहंम्मे जायते कतिय अमावासि सादि पुन्बण्हे। इगि जलहि ठिदी मुणिणो सेसतिये साहियं पल्लं ॥८५०॥ तवासरस्स आदी मज्झते धम्म-राय-अग्गीणं। णासो तत्तो मासा णग्गा मच्छादिआहारा ॥ ८५१ ॥ अर्थ-" इस तरह प्रत्येक सहस्र वर्षमें एक एकके हिसाबसे बीस कल्कि होंगे। १९ कल्कि हो चुकने पर ( पंचमकालके अन्तमें ) 'जलमंथन' नामका अन्तिम कल्कि सन्मार्गको मंथन करने वाला होगा। उस समय इन्द्रराजके शिष्य वीरांगज नामके मुनि, सर्वश्री नामकी अर्जिका, अर्गल नामका श्रावक और पंगुसेना नामकी श्राविका ये चार जीव जैनधर्मके धारण करनेवाले बचेंगे । पंचमकालके अन्तिम महीनके अन्तिम पक्षमें जब तीन दिन बाकी रह जायेंगे, तब मुनि श्रावकके यहाँ भोजन करने जायेंगे और ज्यों ही पहला कौर लेंगे,

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