Book Title: Darshansara
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 40
________________ दर्शनसार । meramrrammmmmmmm ramrawrrrrrrrrrrr- - - irrrrrrrrrorm द्राविड संघको लीजिए । इसकी उत्पत्तिका समय है वि० संवत् ५२६। इसका उत्पादक बतलाया गया हे आचार्य पूज्यपादका शिष्य वज्रनन्दि । दक्षिण और कर्नाटकके प्रसिद्ध इतिहासज्ञ प्रो० के. वी. पाठकने किसी कनड़ी ग्रन्थके आधारसे मालूम किया है कि पूज्यपाद स्वामी दुर्विनीत नामके राजाके समयमें हुए हैं । दुर्विनीत उनका शिष्य था। दुर्विनीतने विक्रम संवत् ५३५ से ५७० तक राज्य किया है। वज्रनन्दि यद्यपि पूज्यपादका शिष्य था; फिर भी संभव है कि उसने उन्हींके समयमें अपना संघ स्थापित कर लिया हो । ऐसी दशामें ५२६ के लगभग उसके द्वारा द्राविडसंघकी उत्पत्ति होना ठीक जान पड़ता है। इसके बाद यापनीय संघके समयका विचार कीजिए । हमारे पास जो तीन प्रतियाँ हैं, उनमें से दोके पाठोंसे तो इसकी उत्पत्तिका समय वि० सं० ७०५ मालूम होता है और तीसरी ग प्रतिके पाठसे वि० सं० २०५ ठहरता है । यद्यपि यह तीसरी प्रति बहुत ही अशुद्ध है, परन्तु ७०५ से बहुत पहले यापनीय सघ हो चुका था, इस कारण इसके पाठको ठीक मान लेनेको जी चाहता है। श्वेताम्बर सम्प्रदायमें हरिभद्र नामके एक बहुत प्रसिद्ध आचार्य हो गये है। विक्रम संवत् ५८५ में उनका स्वर्गवास हुआ है और उन्होंने अपनी 'ललितविस्तरा टीका' में यापनीय तंत्रका स्पष्ट उल्लेख किया है । (देखो सेठ देवचन्द लालचन्द द्वारा प्रकाशित 'ललितविस्तरा' पृष्ठ १०९) इससे मालूम होता है कि ५८५ से बहुत पहले यापनीय संघका प्रादुर्भाव हो चुका था। इसके सिवाय रायल एशियाटिक सुसाइटी बाम्बे बेचके जग्नल की जिल्द १२ (सन् १८७६ ) में कदम्बवंशी राजाओंके तीन दानपत्र "प्रकाशित हुए है, जिनमेंसेतीसरेमें अश्वमेध यज्ञके करानेवाले महाराज कृष्णवर्माके पुत्र देववर्माके द्वारा यापनीय संघके अधिपतिको मन्दिरके

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