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• दर्शनसार ।
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रके समान और और सप्रदायोंकी उत्पत्तिका समय भी इसमें बतलाया है । इस विषय में यह बात विचारणीय है कि क्या किसी सम्प्रदायकी उत्पत्ति किसी एक नियत समयमें हुई ऐसा कहा जा सकता है ? हमारी समझमें प्रत्येक सम्प्रदायकी उत्पत्ति लोगों के मानस क्षेत्रों में बहुत पहलेसे हुआ करती है और वही धीरे धीरे बढ़ती बढती जब सूच विस्तार पा लेती है तब किसी एक नेताके द्वारा प्रकट रूप धारण कर लेती है । अत एव किसी सम्प्रदायकी उत्पत्तिका जो समय वतलाया गया हो, समझना चाहिए उसके लगभग उस सम्प्रदाय के विचार फैल रहे थे । ठीक उसी वर्षमें यह संभव हो सकता है कि उस सम्प्रदाय के प्रधान पुरुषने कोई सास आदेश या उपदेश दिया हो, अथवा वह अपने अनुयायियोंको लेकर जुदा हो गया हो ।
११ दर्शनसारमें श्वेताम्बरोंकी उत्पत्तिका जो समय ( वि० संवत् १३६ ) वतलाया गया है, उससे बिलकुल मिलता हुआ समय श्वेतास्वरग्रन्थोंमें दिगम्बरोंकी उत्पत्तिका बतलाया हे । यथा . --
छव्याससहस्सेहिं नवुत्तरेहिं सिद्धिं गयस्त वीरस्स । तो वोडियाण दिट्ठी रहवीरपुरे समुप्पन्ना ॥
अर्थात् वीर भगवान के मुक्त होने के ६०९ वर्ष बाद बोट्टिकों ( दिगम्बरों ) का प्रवर्तक रथवीरपुरमें उत्पन्न हुआ । इसके अनुसार विक्रम संवत् १३९ में दिगम्बर सम्प्रदायकी उत्पत्ति हुई। दोनोंमें केवल ३ वर्षका अन्तर है । पर यह समय प्रामाणिक नहीं जान पड़ता । क्योंकि भद्रबाहु श्रुतकेवलीका समय अतावतारादि अनेक ग्रन्थोंके अनुसार वीरनिर्वाणसंवत् १६२ के लगभग निश्चित है । १६२ में उनका स्वर्गवास हो चुका था । श्वेताम्बर गुर्वावलियों में वतलाया हुआ समय भी इसी के समीप है। उनके अनुसार वीर नि० संवत् - १७० में मद्रवाहुका स्वर्गवास हुआ है । अर्थात् दोनोंके मतसे